शंखो चौधरी की जीवनी (shankha chaudhary)

 

शंखो चौधरी (shankha chaudhary) का जन्म

25 फरवरी 1916 को संथाल परगना बिहार में हुआ

कला शिक्षा

यह रामकिंकर बेज के शिष्य थे 1939 ईस्वी में स्थानक की उपाधि शांतिनिकेतन से प्राप्त की 1945 में उन्होंने कलाभवन शांतिनिकेतन से ललित कला में डिप्लोमा प्राप्त किया धातु की धुलाई का नेपाल पद्धति से अध्ययन किया 1949 से 1970 ईस्वी तक यह बड़ौदा विश्वविद्यालय के मूर्ति कला विभाग के अध्यक्ष थे

शंखो चौधरी (shankha chaudhary) के प्रमुख पुरस्कार

ललित कला अकादमी का राष्ट्रीय पुरस्कार पदम श्री कालिदास सम्मान ललित यात्रा आदि के मूर्ति शिल्प में नारी- आकृति, वन्य. जीवन से संबंधित विषय रहे

शंखो चौधरी (shankha chaudhary) के प्रमुख मूर्ति शिल्प

पिजन, पीकॉक, कोक, बर्ड, हैंड ऑफ गर्ल( 1958 ईसवी) टॉयलेट पक्षी आदि

टॉयलेट- इस मूर्ति शिल्प में एक नारी आकृति को बैठी हुई मुद्रा में २ सरलीकृत रूप मैं प्रस्तुत किया गया है दोनों हाथ सिर के पीछे की ओर करें रखे हैं इस मूर्ति शिल्प मैं त्रिआगामी प्रमाण के ज्यामिति प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है मूर्ति शिल्प में नयन कक्ष मात्र आभास द्वारा दिखाया गया है

पक्षी- यह मूर्ति स्टेनलेस स्टील से बना है था था मूर्ति शिल्प का एक लकड़ी के आधार पर लगाया गया है यह मूर्ति शिल्प स्टील धातु का बना है इसलिए इस पर पड़ रहे हैं छाया – प्रकाश को देखा जा सकता है जो अत्यंत आकर्षक है

 

 

 

 

 

 

 

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