
सैयद हैदर रजा (S H Raza)
प्रगतिशील कला आन्दोलन के प्रमुख सदस्य:
भारतीय आधुनिक कला परिदृश्य में सैयद हैदर रजा ऐसे कलाकार हैं, जिनके बिना भारतीय आधुनिक कला अपूर्ण है। आधुनिक भारतीयचित्रकला में सैयद हैदर रजा का वही स्थान है, जो पश्चिम में सूजा का है। ये प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के संस्थापक सदस्य थे।
आरा व इन्हीं के प्रयासों से भारतीय आधुनिक कला आन्दोलन ने जोर पकड़ा। सैयद हैदर रजा ने भारतीय परम्परा व संस्कृति को अपने चित्रों के माध्यम से जीवंत बनाया है। सैयद हैदर रजा का प्रकृति के उन्मुक्त वैभव की ओर आकर्षण रहा है।
उनकी कलाकृतियों में मात्र आकर्षण का अंधानुकरण नहीं, अपितु उनकी अनुभूति अपनी ही धारणा-शक्ति से प्रेरित होकर एक अभिनव गतिशीलता के प्रभाव में नये संदर्भो को जन्म देती है। सैयद हैदर रजा के चित्रों में प्रकृति का सौन्दर्य व विकसित परिप्रेक्ष्य यथार्थ के सम्पर्क में अधिक प्राणवान बना है।
इनकी बुद्धि जैसे-जैसे प्रखर होती गई, वैसे-वैसे नित नई अनुभूति को सारगर्भित गहराई में प्रविष्ट हुई, तो इनकी भान्ति मिट गई सैयद हैदर रजा को अनुभव हुआ कि प्रकृति चेतना शून्य नहीं, अपितु नैसर्गिक सुषमा का अस्तित्व है. सत्य का उदगम है, जिसमें हदयगत भावनाओं का समावेश हो सकता है।
सैयद हैदर रजा का जन्म एवं जीवन परिचय:
सैयद हैदर रजा का जन्म सन् 1922 ई. में मध्यप्रदेश के ‘ दमोह कस्बे’ में हुआ था। हाई स्कूल पास करके, ये ‘ नागपुर स्कूल ऑफ आर्ट’ में कला की शिक्षा प्राप्त करने लगे, किन्तु अर्थाभाव के कारण अधिक दिन तक अपनी पढ़ाई न कर सके, अतः इन्हें आत्मसंतुष्टि नहीं मिली और ये मुम्बई चले गये।
अपने अथक परिश्रम के पश्चात् इन्होंने सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स में प्रवेश ले लिया और अत्यन्त कठिनाइयों में संघर्ष करते हुए ‘ फाइन आर्ट्स का डिप्लोमा ‘ प्राप्त किया। इसके पश्चात् इनकी प्रतिभा उज्ज्वल होती गई। इनकी प्रदर्शनियाँ मुम्बई, दिल्ली व नागपुर में आयोजित हुई, जिससे इनकी प्रशंसा हुई।
सैयद हैदर रजा देशी चित्रण:
विदेशों में देशी शैली के प्रभाव से सैयद हैदर रजा को सरकारी छात्रवृत्ति भी मिली।’ फ्रेंच स्कॉलरशिप ‘ पर सैयद हैदर रजा ने’ डी.वो. आर्ट्स ‘ और’ स्टूडियो एडमड हैज ‘, पेरिस में कला का अध्ययन किया।
फ्रांसीसी सरकार से एक बहुत बड़ा पुरस्कार मिलने के बाद सैयद हैदर रजा सन् 1950 ई. से पेरिस में ही बस गये। फ्रांस की राजधानी पेरिस में रह रहे चित्रकार सैयद हैदर सैयद हैदर रजा के बारे में एफ.एन. सूजा ने लिखा है,” सैयद हैदर रजा एक सफल चित्रकार था।
वह सराबोर मुम्बई की अधिकांश झाँकियाँ जलरंगों में बनाया करता था। उसकी धुंधली आकृतियाँ पनोले दृश्यों के लिए सदैव सटीक बैठती थी। सैयद हैदर रजा (S H Raza) की कूची का कैनवास पर सीधा और संवेदनापूर्ण स्पर्श अद्वितीय था। ” फ्रांस पहुँचने के बाद भी सैयद हैदर रजा (S H Raza) उसी शैली में काम करते रहे,
जिस शैली कोउन्होंने भारत में आरम्भ किया था। सैयद हैदर रजा (S H Raza) ने अपनी कला की शुरुआत दृश्यचित्रों से की थी, लेकिन बाद में वे प्रकृति के प्रति आकर्षित और समर्पित हो गये।
आधुनिक कला में काम करने के बावजूद प्राचीन भारतीय कला से उनका अटूट लगाव रहा। ‘ कुछ कला समीक्षक सैयद हैदर रजा (S H Raza) की कला को वियना के व्यावसायिक चित्रकार ‘ प्रोफेसर लाऊमन’ की नकल कहा करते थे, लेकिन उनसे संबंध विच्छेदन करने के बाद
उसकी कला ‘ उसने में के प्रोग्रेसिव एक अनेक धुंधले क्रांतिकारी चित्र आर्टिस्ट्स जलरंगों बनाये मोड़ ग्रुप में और’ दमकते आया की आधुनिक पहली।, भारतीय कौड़ियों प्रदर्शनी भारतीय लघुचित्रों से (मांजे कलायात्रा
सन् 1949 गये से मिलती तीक्ष्ण ई के.) उन में-धार जुलती कलाप्रेमियों खूबसूरत वाले एक ज्यामितीय चित्रोंचित्र के समक्ष श्रृंखला को आकारों सैयद हैदर रजा (S H Raza) ने प्रस्तुत किये
सैयद हैदर सैयद हैदर रजा (S H Raza) द्वारा नवीन कला की खोज:
सैयद हैदर रजा (S H Raza) रूप और दृश्यांकन के साथ-साथ वातावरण की चातुर्दिक चारुता की ओर आकर्षित हुये।
कश्मीर की प्राकृतिक सुषमा और स्वरूप, सुन्दर चेहरों के निखार से इनमें उत्कृष्ट प्रेरणा जागी। मुम्बई में वर्षा ऋतु में बादलों की शोभा और आकाश में क्षण-प्रतिक्षण होने वाले परिवर्तन के साथ ही वातावरण की आई रंगभवता इनकी तूलिका से सजीव हो उठी है।
दृश्य चित्रों के अतिरिक्त ग्रामीण व नागरिक सामाजिकता के अनेक अंकित चित्र, नये रूप के आग्रह ने सौन्दर्य के निरपेक्ष, अनवरत क्रम की भर्त्सना करते हुए, ज्यामितीय अथवा अमूर्त की भी अनेक स्थलों पर व्यंजना की है।
सैयद हैदर रजा (S H Raza) द्वारा दक्षतापूर्वक रंगों का प्रयोग:
रंग प्रयोग में सैयद हैदर रजा (S H Raza) की दक्षता आधुनिक भारतीय कला में एक उपलब्धि के रूप में याद की जाएगी, क्योंकि इन्होंने रंगों के द्वारा मानसिक जटिलताओं तथा प्राकृतिक रहस्यमयता से साक्षात्कार कराया है। इनके रंग आलंकारिक नहीं है।
उनमें अनुभव और व्यवहार-सिद्ध उपक्रम के मुक्त बहाव की प्रवृत्ति प्राय: सभी चित्रों में दिखाई देती है। आरम्भ में इन्होंने जल रंग में काम किया, किन्तु बाद में एक्रेलिक रंग से चित्रण किया। ये अपने चित्रण में कभी कुछ खास रंगों का प्रयोग करते, तो कभी एक ही रंग से सम्पूर्ण आकृति को उभार देते।
इससे ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे अपने चित्रों को दार्शनिक अथवा वैचारिक आधार देना चाहते थे। सैयद हैदर रजा के रंगों में गहराई है, जो हमें उनके कैनवास से दूर तक झाँकने में सहायता करती है। इनके द्वारा रंग प्रयोग को देखकर ऐसा लगता है जैसे सैयद हैदर रजा रंगों से खेलते हैं।
सैयद हैदर रजा ने राजस्थान पर आधारित चित्रों की एक श्रृंखलाबनाई, जिसके संबंध में उन्होंने लिखा है, ” मैंने राजस्थान पर आधारित चित्र बनाये। पहले भी, बाद में भी और अब भी बनाता हूँ, तो राजस्थान प्रत्यक्ष रूप में तो नहीं, लेकिन रंगों में कहीं न कहीं उसका मोर, उसके रंगमय दृश्य अवश्य होता है।
वस्तुतः जब हम किसी जगह को देखते हैं, उसके बारे में सोचते हैं, तो उस कहीं अनुभव न कहीं का चित्र अवश्य हमारे रहता जेहन है में सैयद हैदर सैयद हैदर रजा ‘ कश्मीर की एक गली निवास में कलाकार सैयद हैदर रजा के बारे ने के फ्रांसीसी में रूप कहा में परिचय चित्रकी है कि, ही”
‘ फ्रांस एक मोंगिला में उम्दा’ भी से चीज यद्यपि विवाह मानी संघर्ष किया जाती कम है है तथा नहीं, वहाँ विदेश, तथापि कलाकार में जिस अपने को समाज स्थाई एक प्रकार का भरोसा तो रहता ही है, फिर भी भारत से मेरा संबंध अटूट है व रहेगा। ” ‘ सैरीग्राफ ‘,’ चौपाटी ‘,’ जमीन ‘,
‘ राजस्थान चित्र श्रृंखला ‘,’ ग्रीष्म आवास ‘,’ आज ‘,’ कश्मीर की एक गली ‘ आदि सैयद हैदर सैयद हैदर रजा के कुछ प्रसिद्ध चित्रों के शीर्षक हैं।