कांगड़ा चित्र शैली (kangra chitra shaili)

kangra chitra shaili
                     kangra chitra shaili

कांगड़ा चित्र शैली (kangra chitra shaili) को आश्रय देने वाले राजा

हमीर चंद्र थे (1700 – 1747),अभय चंद्र (1747 – 1750), घमंड चंद्र (1751 – 1756) ,संसार चंद्र (1775 – 1823), अनिरुद्ध

राजा संसारचंद्र द्वारा कांगड़ा चित्र शैली (kangra chitra shaili) के विकास में योग दान राजा संसार चंद्र के समय मैं कांगड़ा चित्र शैली (kangra chitra shaili) आपने चरमोत्कर्ष पर पहुंची संसार चंद्र का शासन काल कांगड़ा चित्र शैली (kangra chitra shaili) का स्वर्ण युग कहा जाता है

राजा संसारचंद्र की चित्र कला मैं अत्यधिक रूचि थी उन्होंने चित्रकारों को उदारता पूर्वक संरक्षक प्रदान किया उनका संरक्षक व प्रोत्साहन पाकर चित्रकार ने अत्यंत उत्कृष्ट चित्रों का निर्माण किया जो चित्र उन्होंने बनाएं

वह केवल चित्र ना होकर महान कला कृतियों के रूप में सामने आए राजा संसारचंद्र वैष्णव धर्म के अनुयाई और कृष्ण भक्त थे अतः चित्रकारों ने कृष्ण – लीलाओ से  संबंधित अनेक चित्रों का निर्माण किया उनकी दृष्टि में कृष्ण से बढ़कर और कोई नहीं था यही कारण है कि स्वास्थ्य पहाड़ी कलाकृतियों में कृष्ण ही छाए रहे

राजा संसार चंद्र के समय में भागवत पुराण जयदेव  कृत, गीत गोविंद, बिहारी कृत, बिहारी सत, केशव कृत, रसिकप्रिया नल दमयंती, आदि कथाएं चित्रित हुई कृष्ण संबंध लीलाओं का विशेष प्रकार से चित्रण किया गया है गीत गोविंद पर आधारित श्रंखला बद चित्र मिले हैं जिन पर मानव का नाम लिखा है जो इस समय का प्रमुख चित्रकार था

कांगड़ा चित्र शैली (kangra chitra shaili) के प्रमुख चित्रकार –

मानकु, खुशाला, किशन लाल,  परखु, फंतु, राजा संसार चंद्र की मृत्यु के बाद कांगड़ा चित्र शैली (kangra chitra shaili) का पतन हो गया

कांगड़ा चित्र शैली (kangra chitra shaili) की विशेषताएं

( 1). हाशिए
( 2). वर्ण योजना
( 3). मानव आकृतियां
( 4). प्राकृतिक – चित्रण
( 5). परिधान

(1). हाशिए –

चित्रों के चारों तरफ लाल और पीले रंग के हास्य चित्रित किए गए है हाशिए मैं किसी में आलेखन भी किया गया है सीधे व स्पष्ट हाशिए भूगोल कालीन हाशियो से भिन्न है लाल रंग के हाशियो पर कहीं तंकारी लिपि में लेख भी लिखे गए हैं

(2). वर्ण योजना –

पहाड़ीचित्रों मैं रंगों का प्रयोग बड़ी रोमांचक ता के साथ किया गया है वर्ण योजना चित्र में अद्भुत सौंदर्य को प्रस्तुत करती हैं चटक रंग,पिरोधी रंग विन्यास विशेष आग्रह के साथ प्रयोग में लाए गए हैं पीला रंग जहां पवित्रता, लाल रंग प्रेम, नीला रंग कृष्णा व बादलों की अनन व बादलों की हासिन भावना के साथ चित्रित किया गया है

(3). मानव आकृतियां –

मानव शैली के अधिकांश चित्र में आंख एक चश्म बनाए गए हैं सुंदर भाव युक्त अंगुलियां इन चित्रों में नारी सौंदर्य को अभियुक्त करती हैं स्त्री और पुरुष दोनों को ही आभूषण पहने हुए चित्रित किया गया है स्त्रियों को लहंगा, पारदर्शी दुपट्टा वह चोली पहने हुए चित्रित किया गया है पुरुष करती पीली धोती, स्वर्ण मुकुट पहने हुए चित्रित किया गया है

(4). प्रकृति चित्रण –

पहाड़ी शैली के चित्रों में प्रकृति का सौंदर्य चित्रण हुआ है खुला आकाश चांदनी रात काले घुमडते बादलों तथा मन में चमकती बिजली सुंदर – पशु – हरी-भरी पहाड़ियां और घने वृक्षों का चित्रण हुआ है

(5). परिधान –

पुरुष को मंगोलिया प्रभाव वाला घेरदार और पजामा तथा पीछे झुकी हुई पगड़ी पहने हुए चित्रित किया है स्त्रियों के परिधान में चोली तथा पारदर्शी दुपट्टा ओढे दिखाया गया है कृष्ण को पितांबर तथा पीली धोती पहने हुए बनाया गया है तथा मुकुट पर मोर पंख बनाया गया है राधा के रूप में स्त्री सुकोमल सुंदर तथा लवणीय पूर्ण अंग भंगिमाओ से युक्त चित्रित की गई है कृष्ण के गले में मोतियों की मालाएं चित्रित है

पहाड़ी चित्रकला शैली

मेवाड़ चित्रकला शैली

 

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