भारत के समाज सुधारक Social reformer of india
राजा राममोहन राय –

राजा राममोहन राय का जन्म 1772 में बंगाल के राधा नगर में हुआ था राजा राममोहन राय अरबी, संस्कृत, लेटिन, डिब्रू जेसी अनेक प्राचीन भाषाओं के जानकार थे राजा राममोहन राय ने 10 वर्ष तक ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी की थी
राजा राममोहन राय ने निम्न ग्रंथ लिखे –
1. तुहाफत उल् मुवाहिदीन
2. प्रज्ञा का चांद (संवाद कौमुदी)
3. हिंदू उत्तराधिकार नियम
4. मिरातुल अखबार (बुद्धि दर्पण)
5. ईशा के नीति वचन शांति और खुशहाली का मार्ग
राजा राममोहन राय ने 1814 में आत्मीय सभा की स्थापना की राजा राममोहन राय ने 1817 मैं डेविड एयर के सहयोग से कोलकाता में हिंदू कॉलेज की स्थापना की थी राजा राममोहन राय ने 20 अगस्त 1828 को कोलकाता में ब्रह्म समाज की स्थापना की थी
राजा राममोहन राय के बड़े भाई जगमोहन की मृत्यु होने के बाद उनकी पत्नी सती हो गई थी इसी कारण राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का विरोध किया
भारतीय इतिहास में अकबर, जहांगीर, सिक्खों के गुरु अमर दास, पुर्तगाली गवर्नर, अल्बूकर्क राजा राममोहन राय ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने सती प्रथा का विरोध किया
राजा राममोहन राय के प्रयासों से ही तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 4 दिसंबर 1829 को अधिनियम 17 के अंतर्गत बंगाल में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया जिसे 1830 में संपूर्ण ब्रिटिश भारत में लागू कर दिया
राजा राममोहन राय को 1830 में मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ने राजा की उपाधि देकर उन्हें अपनी पेंशन बटवा ने के लिए ब्रिटेन के सम्राट विलियम चतुर्थ के पास लंदन भेजा था
बंगाल के नवाबों द्वारा राजा राममोहन राय के पूर्वजों को राय की उपाधि दी गई थी राजा राममोहन राय की मृत्यु 1833 में इंग्लैंड मैं ब्रिस्टल नामक स्थान पर इनके मित्र कारपेंटर के घर में हुई थी कारपेंटर ने ही राजा राममोहन राय की जीवनी लिखी थी
राजा राममोहन राय को ब्रिस्टल मैं ही दफनाया गया दफनाने के कारण माना जाता है कि इन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था
बिस्तर में स्थित इन की कब्र पर अजमेर के चौहान शासक विग्रह राजा चतुर्थ के नाटक हरि अकेली की पंक्तियां खुदी हुई है
राजा राममोहन राय ने संवाद कौमुदी नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया था किसी भी भारतीय द्वारा प्रकाशित, संपादित और संचालित प्रथम समाचार पत्र था
राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज का संचालन द्वारिका नाथ टैगोर और देवेंद्र नाथ टैगोर ने किया था
देवेंद्र नाथ टैगोर ने 1862 में केशव चंद्र सेन को ब्रह्म समाज का आचार्य नियुक्त किया था केशव चंद्र सेन ने ही ब्रह्म समाज को सर्वाधिक लोकप्रियता दिलाई थी
केशव चंद्र सेन ने इंडियन मिरर नामक समाचार पत्र का संपादन भी किया था
केशव चंद्र सेन के विचारों के कारण ब्रह्म समाज ने फूट पड़ने लगी इस कारण 1865 में केशव चंद्र सेन को ब्रह्म समाज से निष्कासित कर दिया इस कारण1865 मैं ब्रह्म समाज का विभाजन हो गया
देवेंद्र नाथ टैगोर का मूल ब्रह्म समाज आदि ब्रह्म समाज कहलाया जबकि केशव चंद्र सेन का विभाजित ब्रह्म समाज भारतीय ब्रह्म समाज का लाया केशव चंद्र सेन के प्रयासों से ही 1872 में ब्रह्म मैरिज एक्ट बनाया गया जो
केवल ब्रह्म समाज पर ही लागू होता है इसके अंतर्गत 14 वर्ष से कम आयु की लड़की के विवाह प्रतिबंध लगा दिया गया
इस एक्ट के बाद केशव चंद्र सेन ने अपनी 13 वर्ष की लड़की का विवाह कुच बिहार के राजा के साथ कर दिया था इस कारण 1878 मैं भारतीय ब्रह्म समाज में भी फूट पड़ गई
1878 में भारतीय ब्रह्म समाज से अलग होकर साधारण ब्रह्म समाज बनाया गया जिसकी स्थापना आनंद मोहन दास और शिवनाथ शास्त्री ने की थी
दयानंद सरस्वती एवं आर्य समाज –
दयानंद सरस्वती का वास्तविक नाम मूल शंकर था इनका जन्म 1824 मैं गुजरात के तंकारा नामक स्थान पर हुआ था परंतु स्वामी पूर्णानंद ने ही इनका नाम दयानंद सरस्वती रखा दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद थे दयानंद को उत्तरी भारत का हिंदू लूथर भी कहा जाता है
एनी बेसेंट के अनुसार दयानंद सरस्वती प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था कि भारत भारतीयों के लिए है दयानंद प्रथम भारतीय थे जिन्होंने महिलाओं और शुद्रो को धार्मिक ग्रंथ पढ़ने का अधिकार दिया दयानंद पाश्चात्य शासन और शिक्षा के विरोधी थे
दयानंद के अनुसार विदेशी शासन कितना ही अच्छा हो परंतु स्वदेशी शासन से अच्छा नहीं हो सकता
दयानंद ने 10 अप्रैल 1875 मुंबई में आर्य समाज की स्थापना कि जिसका उद्देश्य वैदिक धर्म की पुनः स्थापना करना और भारत में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को रोकना था 1877 मैं आर्य समाज का मुख्यालय लाहौर में बनाया गया
दयानंद ने नारा दिया था – वेदों की ओर लौटो दयानंद ने 1863 मैं पाखंडो का खंडन करने के लिए पाखंड खंडनी पताका फहराई थी
दयानंद सरस्वती ने राजस्थान की कुल 3 बार यात्राएं की थी जिनमें वह राजस्थान में सर्वप्रथम 1865 मैं मदन पाल शासन काल में करौली आए थे
दयानंद सरस्वती ने 1874 मैं सत्यार्थ प्रकाशन नामक ग्रंथ की रचना की थी यह हिंदी भाषा में लिखा गया था इसका प्रकाशन अजमेर से हुआ था सत्यार्थ प्रकाशन की भूमिका पुष्कर में लिखी गई थी जबकि इसका अधिकांश भाग दूसरा संस्करण उदयपुर मैं लिखा गया था
सत्यार्थ प्रकाशन में ही दयानंद सरस्वती मैं पहली बार स्वभाषा , स्वधर्म, स्वदेशी, स्वराज्य जेसी शब्दों का प्रयोग किया गया था
दयानंद ने 1877 मैं इलाहाबाद के वैदिक यंत्रालय नामक छापाखाना स्थापित किया था जिसे बाद में अजमेर स्थानांतरित कर दिया गया
दयानंद ने 1882 मैं उदयपुर में परोपकारिणी सभा की स्थापना की थी इसके प्रथम सभापति उदयपुर के महाराणा सज्जन सिंह बनाए गए थे
दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज का सबसे प्रमुख योगदान शिक्षा के क्षेत्र में रहा है
आर्य समाज द्वारा शुद्धि आंदोलन भी चलाया गया जिसका कार्य हिंदू धर्म छोड़कर अन्य धर्मों में गए हुए व्यक्तियों को पुनः हिंदू धर्म में शामिल करना था
एक अंग्रेज इतिहासकार वैलेंटाइल शिरोल ने अपनी पुस्तक इंडियन अनरेस्ट मैं (भारतीय अशांति) आर्य समाज को भारतीय अशांति का जनक बताया है
जोधपुर महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय के एक नन्ही जान (जोहराबाई) नामक वेश्या के साथ संबंध होने के कारण दयानंद ने जसवंत सिंह द्वितीय को उसके ही दरबार में फटकार लगाई थी
कहा जाता है कि नन्ही जान द्वारा दयानंद को जहर दे दिया गया इस कारण दयानंद बीमार हो गए और 30 अक्टूबर 1883 को दयानंद की दीपावली के दिन अजमेर में मृत्यु हो गई
दयानंद की मृत्यु के बाद पाश्चात्य शिक्षा के समर्थन और विरोध के आधार पर आर्य समाज दो भागों में विभाजित हो गया
पाश्चात्य शिक्षा के समर्थकों में लाला हंसराज और लाला मुंशी राम प्रमुख थे जिन्होंने 1886 को लाहौर में DAVl दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल खोलें
पाश्चात्य शिक्षा के विरोधियों में स्वामी श्रद्धानंद प्रमुख थे जिन्होंने1902 मैं हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की थी
स्वामी विवेकानंद –
विवेकानंद को हिंदू नव जागरण का अग्रदूत कहा जाता है विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था इन के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था
विवेकानंद की पहचान युवाओं के प्रतीक के रूप में की जाती है जिस कारण इनके जन्म दिवस 12 जनवरी को प्रतिवर्ष भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है
विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस थे इनका भी वास्तविक नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था रामकृष्ण परमहंस कोलकाता में दक्षिणेश्वर में स्थित काली माता मंदिर के पुजारी थे इस कारण रामकृष्ण परमहंस को दक्षिणेश्वर का स्वामी भी कहते हैं
रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा था “अगर आप भारत को जाना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए” विवेकानंद ने कहा था “उठो जागो और तब तक चलते रहो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए”
विवेकानंद के पिता का नाम – विश्वनाथ, माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था
विवेकानंद ने निम्न पुस्तके लिखी –
ज्ञान योग, कर्म योग, राजयोग, मैं समाजवादी हूं
विवेकानंद की प्रिय शिष्या सिस्टर निवेदिता थी जिस का वास्तविक नाम मारग्रेट अल्वा था विवेकानंद 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए हिंदू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में शिकागो गए थे
शिकागो धर्म सम्मेलन में विवेकानंद के संबोधन के बाद न्यूयॉर्क के एक समाचार पत्र डेली हेराल्ड ने लिखा था “विवेकानंद को सुनने के बाद लगता है कि भारत देश के जैसे ज्ञान संपन्न देश में धर्म प्रचारक भेजना मूर्खतापूर्ण कार्य हैं
डेली हेराल्ड ने ही विवेकानंद को तूफानी हिंदू कहा था विवेकानंद को शिकागो जाने के लिए आर्थिक सहायता खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह ने ही दी थी
अजीत सिंह के सुझाव पर ही नरेंद्र नाथ ने अपना नाम विवेकानंद रखा था विवेकानंद ने न्यूयॉर्क में वेदांत सभाओं की स्थापना की थी अमेरिका से आने के बाद विवेकानंद ने 1 मई 1897 को कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी
रामकृष्ण मिशन के दो मुख्यालय थे
1. वेल्लूर (2). मायावती
विवेकानंद ने निम्न समाचार पत्रों का संपादन किया था
1. उदबोधन (2). प्रभुत्व भारत
विवेकानंद की 4 जुलाई 1902 को वेल्लूर में 39 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई