रत्नाकर विनायक सांखलकर(ratnakar vinayak sakhalkar)

रत्नाकर विनायक सांखलकर(ratnakar vinayak sakhalkar)–रत्नाकर विनायक सांखलकरका जन्म 1918 ई. में महाराष्ट्र के रत्नागिरी नामक स्थान पर हुआ। कानून की शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् भी उनकी रुचि कला में अधिक थी जिसके कारण इन्होंने जे. जे. स्कूल आर्ट, मुम्बई से कला की मास्टर डिग्री प्राप्त की तत्पश्चात् जी.डी. (आर्ट) की. उपाधि प्राप्त कर 1953 ई. में एम. एड. किया।
इसके बाददयानन्द महाविद्यालय अजमेर में प्राध्यापक पद पर नियुक्त हुए। इनकी कला इतिहास में विशेष रुचि थी। इन्होंने अपने विचारों के माध्यम से राजस्थानी कला को आन्दोलित किया। इन्होंने परम्परागत कला परम्पराओं का विश्लेषण कर नई पीढ़ी को इससे अवगत कराया।
वे कला को उपासना मानकर कला साधना करते थे तथा कला का सौन्दर्यगत भाव ईश्वरप्रदत्त शक्ति के रूप में स्वीकार करते थे। सांखलकर ने कला निर्माण पद्धति को दो भिन्न-भिन्न रूपों में विश्लेषित किया। उनके अनुसार प्रथम पद्धति चित्रकार की व्यक्तिगत प्रतिभा पर निर्भर होती है, जिसे वह अपने अनुसार चित्रित करता है। दूसरी कला पर आधारित होती है जो विषय के रूप में दृश्यगत होती है। दोनों पद्धतियों का सामंजस्य सांखलकर ने अपने चित्रों में स्थापित किया है।
भाव तथा रूप का समन्वय ही सार्थक सृजन करता है। आगे चलकर उनकी रुचिआधुनिक चित्रकला की ओर बढ़ी और आजीवन उन्होंने उसी में कार्य किया। केन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा श्रेष्ठ चित्रकार से सम्मानित किया गया। आपकी पहचान एक शिक्षक, कलासमीक्षक तथा कला इतिहास मर्मज्ञ के रूप में अधिक है। आपने अनेक कला पुस्तकें लिखीं। आपको कलाविद् की उपाधि से राजस्थान ललित कला अकादमी ने 1989 ई. में सम्मानित किया।