भारतीय शिल्प षडंग –
यशोधर पण्डित जयपुर के राजा जय सिंह प्रथम के दरबार के प्रख्यात विद्वान थे जिन्होने कामसूत्र की ‘जयमंगला’ नामक टीका ग्रंथ की रचना की। इस ग्रन्थ में उन्होने वात्स्यायन द्वारा उल्लिखित चित्रकर्म के छः अंगों (षडंग) की विस्तृत व्याख्या की है।
रूपभेदः प्रमाणानि भावलावण्ययोजनम।
सादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्रं षडंगकम्॥
(i) रूपभेद : प्रत्यक्ष के विभिन्न रूपों का ज्ञान
(ii) प्रमाणम : परिप्रेक्ष्य ,माप और संरचना का ज्ञान
(iii)भाव : अनुभूतियों के चित्रण का ज्ञान
(iv) लावण्य योजनम : सौन्दर्य सृष्टि और कलात्मक प्रस्तुति
(v) सादृश्यं : दो विभिन्न वस्तुओं में समानता का ज्ञान
(vi) वर्णिकभंगम : कूची और रंगों का कलात्मक प्रयोग