बसोहली चित्र शैली basohli chitra shaili in hindi

basohli chitra shaili
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बसोहली चित्र शैली (basohli chitra shaili) का उदभव –

प्राचीन काल में बसोहली की राजधानी बालोर या बल पूर्ति थी यह वर्तमान बसोहली से 18 किलोमीटर पश्चिम मैं है कृष्णपाल के पश्चात उसके पोत्र भूपत पाल ने आधुनिक बसोहली की स्थापना की तथा मुगल शासक शाहजहां के दरबार में उपस्थित हुआ

भूपत पाल के पश्चात बसोहली शासकों में कला के प्रोत्साहन की दृष्टि संग्राम पाल, मैं दीनी पाल तथा अमृत पाल के शासनकाल विशेष उल्लेखनीय है इस काल में बसोहली कला का प्रमुख केंद्र बन गया बसोहली मैं चित्रण कार्य राजा कल्या पाल अनवरत चलता रहा

बसोहली चित्र शैली (basohli chitra shaili) का विकास –

बसोहली मैं दीनी पालने रंग महल एव शीश महल का निर्माण करवाया जिनकी भित्तियो पर नायिका भेद आदि विषयों पर आधारित चित्र बनाए गए बसोहली चित्र शैली (basohli chitra shaili) के विकास में कांगड़ा एवं चम्बा शैली का भी योगदान रहा

परंतु बसोहली चित्र शैली (basohli chitra shaili) इन शैलियों से भिन्न अपनी फर पृथक पहचान रखती हैं बसोहली चित्र शैली (basohli chitra shaili) के विकास में कश्मीर तथा स्थानीय शैलियों का भी योगदान रहा है

बसोहली चित्र शैली (basohli chitra shaili) के प्रमुख चित्र – बसोहली मैं वैष्णव धर्म के प्रति आगाह श्रद्धा दाती थे अतः कृष्ण जीवन संबंधी चित्रों की बहुतायात हैं भानु दत्त कृत, रसमंजरी, गीत गोविंद, राग माला, बारहमासा, साधु व राष्ट्र नायक – नायिका आदि प्रमुख हैं

बसोहली चित्र शैली (basohli chitra shaili) की विशेषताएं – :

( 1) धार्मिक चित्र – बसोहली मैं वैष्णव धर्म की अधिक मान्यता थी जिसके चलते जनमानस की भावना वहां के चित्र में दिखाई पड़ती है बसोहली चित्र शैली (basohli chitra shaili) में कृष्ण की जीवन लीला संबंधी चित्रों का अधिक चित्रण हुआ है

इससे साफ – साफ पता चलता है की बसोहली मैं वैष्णव धर्म के प्रति गहरा रुचि थी इस समय मीरा केशव दास, बिहारी तथा सूरदास के भक्ति पूर्ण साहित्य ने जनमानस में भक्ति भावना को और अधिक फैला दिया

यह भक्ति में वातावरण चित्र में दिखाई देता है वहां की जनता विष्णु रूपी राम को व कृष्ण को अपना आराध्य मानती थी

( 2) वर्ण योजना – बसोहली चित्र शैली (basohli chitra shaili) सरल सौम्भ तथा भाव पूर्ण है इसमें चटक वह तेज चमकने वाले रंगों का उपयोग किया गया है कांगड़ा के सामान रेखा में कोमलता गठन शीलता नहीं है लेकिन भावपूर्ण कांगड़ा से कहीं अधिक है

बसोहली चित्रकारों ने लॉक व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए बाहरी तत्वों पर ध्यान न देकर विषयगत भावना व्यक्ति को अधिक महत्वता दी है यही कारण है कि कांगड़ा से अधिक श्रेष्ठ है

( 3) रूप – निर्माण – बसोहली युक्ति चित्रण में पुरुष और नारी की मुखाकृतियॉ शेष रूप से दिखाई गई है माथा ढाल दार तथा नाक ऊंची एक ही रेखा द्वारा बिना रुकावट के बनाई गई है

चित्रकारों की कला आंखों की बनावट में दिखाई देती हैं नेत्र बड़े-बड़े चित्रित किए गए हैं नायक थाना एकांकी भाव भंगिमा ओ व हस्त मुद्राओं का सुंदर चित्रण किया गया है अजंता के पश्चात इतना आकर्षक मुद्रा चित्रण बसोहली चित्र शैली में ही दिखाई देता है

बसोहली मैं न केवल मुख मुद्रा पर चित्रण हुआ है बल्कि मुद्रा, नाक, कान, मुंह ललाट तथा संपूर्ण शरीर का अंकन किया गया है चित्रों में वस्त्र पारदर्शी बनाए गए हैं इनके अंदर से शरीर की कोमलता दिखाएं पढ़ रही है बसोहली के चित्रकारों ने बड़े ही सौम्य और श्रृंगारिक स्वरूप का चित्रण सरलता का भाव लाने में सक्षम है रहे हैं

( 4) प्रकृति व पशु – प्रकृति का सुंदर चित्रण बसोहली चित्र शैली  में हुआ है इस शैली मे वृक्षों को पंक्ति नुमा चित्रित किया गया है इन रक्षण को हल्की रंग योजना द्वारा उभार कर अलंकृत रूप में चित्रित किया गया है

वृक्षों में मोरपंखी, अखरोट तथा आम आदि वृक्षों को चित्रों में ऊंचाई तक दर्शाया गया है बसोहली चित्रों में पशुओं की अपनी विशेषता है चित्रों में पशुओं को दुबला – पतला तथा कमजोर दर्शाया गया है

पशुओं के पेट चिपके हुए लंबे कान तथा सींग मुड़े हुए दर्शाया गए हैं चित्र में बालकृष्ण के साथ बछड़ों को चित्रित किया गया है राग माला में भी नायिका के साथ पशुओं को चित्रित किया गया है

( 5) भवन चित्रण – बसोहली चित्रों में भवनो का चित्रण सुंदर रूप में हुआ है मुगल शैली से प्रभावित भवन चित्रों की दीवारों पर सुंदर आलो का चित्रण हुआ है इन आलों मैं इत्र दान गुलाब पाश पुष्प पात्र एवं फूलों से भरी हुई टोकरी रखी हुई है भवन के कपाट सुंदर आलेखनों द्वारा अलंकृत किए गए हैं

खिड़कियां जालीदार तथा स्तंभ नकाशी दार बनाए गए हैं पिंजरे मैं बंद सारिका व अन्य पक्षियों को भवन चित्रण में अधिक देखा गया है बसोहली चित्र शैली  का संपूर्ण पंजाब, तिब्बत नेपाल गढ़वाल तक प्रचार प्रसार रहा है

इससे शैली के लघु चित्रों के साथ – साथ भित्ति चित्र में भारतीय संस्कृति की झलक देखी जा सकती है

बसोहली चित्र शैली  के प्रमुख चित्र –

(1). साधु व कृष्ण –

बसोहली चित्र शैली  का यह चित्र सोलवीं शताब्दी के अंत अथवा 17 वी शताब्दी के प्रारंभ का है इस चित्र में भगवान कृष्ण व एक साधु बनाया गया है श्री कृष्ण को नीले रंग में बनाया गया है कृष्ण पीले रंग की धोती पहन रखी है क्या कथा

कंधे पर लंबा गमछा डाल रखा है द्वारका कृष्ण के सामने हाथ जोड़ एक साधु खड़ा है इनकी धोती का रंग कृष्ण से अलग है

इस चित्र में साधु व कृष्ण की पृष्ठभूमि हरी-भरी दिखाई गई है वृक्षों को हल्की गहरी तथा मोटी रंगत प्रदान की गई है क्षितिज रेखा आरंभिक से लिखी विशेष पहचान है बादलों को बहते हुए जल की भांति 1 लंबी एक कतार में दर्शाया गया है

शारीरिक गठन माशल युक्त यहां भारी दर्शाया गया है आंखें बड़ी ललाट उभरा हुआ व उठा हुआ है नाक को एक ही रेखा द्वारा पूर्ण किया गया है. हाशिये मोटे तथा लाल रंग से बने हैं यह चित्र विक्टोरिया एवं अल्बर्ट म्यूजियम लंदन में सुरक्षित हैं

(2). नायक – नायिका –

नायक  नायिका मैं मानव आकृति चित्रण विशेष महत्वपूर्ण स्थान रखता है मानव आकृतियों में शारीरिक गठन कांगड़ा शैली के समान है आंखें भी बड़ी-बड़ी चित्र की गई है हस्त मुद्राएं, वस्त्रों का शंकु नुमा आकार तथा व्यवस्थित फरहन बसौली शैली की उत्कृष्ट कृति है

17 वी शताब्दी के उत्तराद्ध मैं रेखा पतली बनने लगी है उनमें कोमलता तथा लचीलापन दिखाएं देने लगा है नारी चित्रण में नायिका को कंचुकी तथा घेरदार घागरा पहनाया गया है यह वस्त्र पारदर्शी बनाए गए हैं पुरुषों के वस्त्र मुगलिय शैली से प्रभावित दिखाई देते हैं

पुरुषों को लंबा व घेरदार जामा और पांव में तंग जामा पहने चित्रित किया गया है आभूषण अत्यंत सूक्ष्म तथा चटक एवं स्वर्ण रंगो द्वारा चित्रित किए गए हैं यह चित्र बसोहली चित्र शैली  के उत्कृष्ट चित्रों में से एक माना जाता है

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