
Ajanta caves अजन्ता की गुफाएँ की भौगोलिक स्थिति
ईसा पूर्व छठी-सातवीं शताब्दी में भारत में धर्म की गूढता और कठोरता बहुत बढ़ गयी थी। ऐसे समय में मध्यम व निम्न वर्ग को सरलता से धर्म का अनुसरण करने की बहुत आवश्यकत महसूस हुई।
इसी के फलस्वरूप भारत में जैन और बौद्ध धर्म का मात्र उद्भव व विस्तार ही नहीं हुआ, अपितु इन्हें राज्याश्रय भी मिले। धर्म अनन्त चलने वाला विषय रहा है, अतः इसके आधार भी धीरे-धीरे स्थायित्व की ओर बढ़ते गये।
जैन धर्म के ताड़पत्र, भोजपत्र, कागज और कपड़े पर बने चित्रों के अस्थाईत्व के कारण बौद्ध धर्मावलम्बियों ने पाषाण स्तूप और विहारों में धर्माभिव्यक्ति का चयन किया।
मध्यप्रदेश में “ सांची और भरहूत”, दक्षिण में ” अमरावती और नागार्जुनकोंडा तथा पश्चिम में“ कार्ले और भाजा ‘ के चैत्य, ये सभी बौद्ध धर्म को स्थायित्व देने के प्रयास थे। यद्यपि स्वयं ने उनकी (बुद्ध की) चित्रकृति बनाने की निषेधाज्ञा दी थी,
फिर भी उनके अनुयायी धर्म की प्रगाढ़ता में बौद्ध धर्म के प्रचार में इसे अंगीकार नहीं कर पाये और बौद्ध धर्म के प्रचार में बुद्ध के और उनके जीवन के खूब श्रृंगारमय मूर्तियाँ व चित्र बनाकर अजन्ता (ajanta caves) का निर्माण किया।
सातवाहन काल, जो ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में दक्षिण में और उत्तर के बहुत बड़े क्षेत्र में स्थापित हो चुका था। अजन्ता (ajanta caves) के चित्रों का प्रारम्भ इसी काल में हुआ। वाकाटक काल भी अजन्ता (ajanta caves) का महत्त्वपूर्ण समय था।
सोलहवीं गुफा के शिलालेख से ज्ञात होता है कि राजा हरिसेन का मन्त्री वराहदेव ने इसे खोदने और चित्रण करने की आज्ञा दी थी। इस प्रकार अजन्ता (ajanta caves) की गुफाएँ और चित्र 200 ईस्वी पूर्व से 625 ईस्वी तक निर्मित होते रहे।
अजन्ता (ajanta caves) की गुफाएँ महाराष्ट्र में जलगाँव-औरंगाबाद के मार्ग पर जलगाँव से 59 किमी. और औरंगाबाद में 102 किमी. पर अजन्ता (ajanta caves) की पहाड़ियों में स्थित है।
अजन्ता (ajanta caves) के पास में तीन गाँव आते हैं, जहाँ से अजन्ता (ajanta caves) तक जाया जाता है। ये जलगाँव, औरंगाबाद और पहुर हैं।
अजन्ता (ajanta caves) का प्रभुत्व सतपुडा घाटी में प्रकृति के मनोरम सौन्दर्य को और भी द्विगुणित कर देती है। कई सर्पाकार घुमाव से यहाँ पहुँचने से पूर्व अजन्ता (ajanta caves) का अनुमान भी नहीं लगता है।
यहीं से गिरता सप्त प्रपात बाघोरा नदी का उद्गम स्थल। इस प्रपात के कारण गुफा संख्या सोलह का दृश्य और भी रमणीय हो जाता है। यहाँ पर एक अर्द्धचन्द्राकार पंक्ति में काटकर ये गुफाएँ बनाई गई है।
कुछ अधुरी गुफाओं से पता चलता है कि इनकी कटाई छत व उपरी भाग से होती थी और धीरे-धीरे नीचे की ओर काटते हुए चले जाते थे। यह कार्य करते समय सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु रहती थी:
स्तम्भों व अन्य आकारों के लिए प्रस्तर खण्ड छोडना, फिर इनगुफाओं में स्तम्भ, मूर्तियाँ तथा सभागार उकेर कर निकाले जाते थे।
सघन सह्याद्रि पर्वतमाला की एक शाखा इन्ध्यान्द्रि की पहाड़ियों की लगभग 250 फीट ऊँची अर्द्धवृत्ताकार चट्टानों को खोदकर इन गुफागृहों का निर्माण किया गया। ऐसे मनोरम और दिव्य स्थान को बौद्ध धर्मानुयायियों ने अपनी धर्म और कला साधना के लिए उचित समझा होगा।
अजन्ता (ajanta caves) की गुफाएँ शेर, चीतों व जंगली जानवरों की रहने वाली प्राकृतिक गहरी-अन्धेरी गुफाएँ नहीं है, ये तो मानव निर्मित अनुपम, अद्वितीय और सौन्दर्य के जीवन्तरूप स्थापत्य हैं।
पहाड़ियों की चट्टानों को खोदकर उन्हीं में छत, स्तम्भ, विशाल सभाभवन, विशालद्वार, विशाल दीवारें, अगणित मूर्तियाँ बनाई हैं, जो अजन्ता (ajanta caves) को विश्वभर में अपना स्थान देते हैं।
तीन-चार स्थानों पर पहाड़ों में ही दो-दो, तीन-तीन मंजिल की गुफाएँ हैं। इन्हीं की विशाल मित्तियों पर विश्वप्रसिद्ध बौद्ध चित्र बनाये गये थे। इस प्रकार अजन्ता (ajanta caves) की ये गुफाएँ वास्तुकला, मूर्तिकला और चित्रकला की अनुपम संगमस्थली है।
अजन्ता (ajanta caves) की खोज और जीर्णोद्धार
अजन्ता (ajanta caves) गुफाओं से 11 किमी. की दूरी पर एक छोटा सा गाँव अजिण्ठा है। उसी के कारण इन गुफाओं का नामकरण ” अजिण्ठा की गुफाएँ” और अंग्रेजी में ” AJANTA CAVES”
फिर हिन्दी में अजन्ता (ajanta caves) की गुफाएँ चलन में हो गया। अजन्ता (ajanta caves) पर भारतीय और विदेशी कई चित्रकारों और लेखकों ने खूब काम किया। लेखकों ने इन पर लेख लिखे तो चित्रकारों ने इनकी हूबहू प्रतिकृतियाँ, (चित्रकृतियाँ) निर्मित की, जिसकी संक्षिप्त जानकारी भी यहाँ आवश्यक है।
लोरेन्स बिनयन के अनुसार अजन्ता (ajanta caves) एशिया की कला में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है, और पाश्चात्य देशों में भारतीय चित्रकला को अपना न्यायोचित स्थान दिलाने में अजन्ता (ajanta caves) के चित्रों का प्रमुख स्थान रहा है।
अजन्ता (ajanta caves) की इतनी महत्त्वपूर्ण गुफाएँ लगभग 1200 वर्षों तक भारत में अनभिज्ञ रही। 1819 ईस्वी में मद्रास रेजिमेन्ट की एक फौजी अधिकारी को आखेट के समय सर्वप्रथम इन गुफाओं का पता चला फिर तो इन गुफाओं पर लेख पर लेख प्रकाशित हुऐं।
अनुकृतियों पर अनुकृतियाँ बनी और अजन्ता (ajanta caves) विश्वप्रसिद्ध कला तीर्थस्थल बन गया। जनरल सर जे. एलेक्जेन्डर अजन्ता (ajanta caves) को देखने सन 1854 में स्वयं इण्डिया आये और रॉयल एशियाटिक सोसायटी को अपनी टिप्पणी भेजी।
1828 ईसवी में कप्तान ग्रेसले और राल्फ ने भी अजंता का दौरा किया था परंतु रॉयल एशियाटिक सोसायटी के सदस्यों में 1943 ईस्वी में छपी जेम्स फर्ग्यूसन की एक अधिकृत रिपोर्ट ने कला जगत में हलचल मचा दी ।
1844 ईसवी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मेजर रोबर्ट गिल को अजंता की अनुकृतिया बनाने हेतु लंदन से इंडिया भेजा गया जिन्होंने बड़े ही परिश्रम से 12 वर्षों में इन चित्रों की अनुकृतियां बनाई जिसमें से 30 श्रेष्ठ अनुकृतियां लंदन भेजी गई।
जो लंदन के क्रिस्टल पैलेस में प्रदर्शित हुई किंतु 1866 ईस्वी के एक अग्निकांड में अधिकांश चित्र नष्ट हो गए 1872 ईस्वी में ब्रिटिश सरकार के आदेश पर मेजर ग्रिफिट्स ने दोबारा तेल रंग में इनकी अनुकृतियां की
1909-11 के मध्य लेडी हैरिंघम, कुमारी लार्नर लाला, कुमारी लयूक, नंदलाल बसु , असीत कुमार हलदार , वेंकटप्पा , और एन एस गुप्ता ने पुनः इन चित्रों की अनु कृतियां कि जो 1915 में लंदन में प्रकाशित हुई
बाद में इंडिया सोसाइटी की सहायता से लेडी हैरिंधम की एक पुस्तक अजंता फ्रेस्को प्रकाशित हुई निजाम सरकार , अवध नरेश , भारत सरकार और यूनेस्को ने भी अजंता पर अनेक चित्रावली या और ग्रंथ प्रकाशित किए इनके अतिरिक्त कई भारतीय लेखकों चित्रकारों ने इन पर उल्लेखनीय काम किया
अजन्ता (ajanta caves) की चित्रण विधि
चित्रण हेतु पत्थर की की खुरदरी दीवारों पर पर खडिया, गोबर स्थानीय मिट्टी व पत्थर के छोटे-छोटे कणों का अलसी के पानी में कई दिनों तक भिगोकर चट्टानों पर उनका लगभग एक इन्च का मोटा पलास्तर कर, समतल दीवार तैयार की जाती थी कभी-कभी छत के पलास्तर में धान की भूसा भी मिलाया जाता था।
उन सभी पलास्तरों पर एक पतली सी परत सफेदे की चढाई जाती थी, जो अकसर चूना या स्थानीय खड़िया हुआ करती थी। फिर उसे ओपणी से गुटाई कर चित्रण योग्य धरातल तैयार किया जाता था।
ई. वी. हेवेल का मत है कि अजन्ता (ajanta caves) के चित्रों में अत्यधिक प्रकाश दर्शाने के लिए सामान्यतः टेम्परा रंग से चित्रण किया जाता था।
लेडी हैरिंघम का मत है कि चित्र संयोजन का विवरण लाल रंग के रेखांकन के बाद तीन पतली रंगों की परतों से रंगों की ताने लगाई जाती थी। फिर उनके उपरान्त चित्रों की बाह्य रेखाएँ लाल-हिरौंजी मिले काले रंग से खींच दी जाती थी।
स्थानीय खनिज व वनस्पतिक रंग इन चित्रों के काम में लिये गये हैं। रंग लगाने के बाद काले व लाल मिला भूरे रंग से आकार की सीमा रेखाएँ बना दी जाती थी। आवश्यकतानुसार छाया-प्रकाश व कहीं-कहीं विरोधी रंगों के प्रयोग द्वारा आकृतियों को निश्चित रूप दिया जाता था।
अजन्ता (ajanta caves) की गुफाओं की संख्या
अजन्ता (ajanta caves) में कुल 30 गुफाएँ हैं। पहले 29 गुफाएं ही गिनती की श्रेणी में थी लेकिन कुछ वर्ष पूर्व एक और गुफा का पता चला और इसे 15 A नाम दिया गया इसका कारण यह है कि यह गुफा 14 और 15 के मध्य स्थित है
अध्ययन की सुविधा के लिए इन गुफाओं की गिनती पूर्व से पश्चिम की ओर की गई हैं। यहां चेत्य और विहार दोनों ही गुफाएं हैं इनमें नवी, दसवीं, 19वीं, 26वीं और 30वीं गुफाएं चेतिया गुफाएं हैं जहां पूजा उपासना होती थी।
शेष सभी गुफाएं विहार है बौद्ध भिक्षुओं वह साधुओं के रहने का स्थान थी चेत्य की अपेक्षा विहार में चित्रण की भरमार है पहाड़े की एक और बनी हुई करीब 100 सीडीओ को चढ़कर गुफ़ा संख्या 1 तक पहुंचा जा सकता है ।
सन 1879 ईस्वी में अजंता की 16 गुफाओं में चित्र शेष थे पहली, दूसरी, चौथी, सातवीं, नवीं, दसवीं, 11वीं, 15वीं, सोलवीं, 17वीं, 18वीं, 19 वीं, बीसवीं, 21वीं, 22वीं, 26वीं गुफाएं चित्रों से पूर्ण अलंकृत थी
किंतु सन 1910 ईसवी तक विशेष महत्वपूर्ण सुरक्षित चित्र पहली, दूसरी, नवीं, दसवीं, 11वीं, 16वीं, 17वीं, 19वीं, और 21 वीं में ही रह गए थे इन सभी में 9वीं और 17वीं, 19वीं, और 21वीं मैं ही रह गए थे ।
इन सभी में 9वीं और 17वीं गुफा में सर्वाधिक चित्र शेष रह गए हैं गुफा संख्या तीसरी, चौदहवी, तेविस्वी, चौवीस्वी, 27वीं, 28वीं, और 29वीं यह साथ गुफाएं खनन की दृष्टि से आज भी अधूरी हैं।
अजन्ता की गुफाओं का कालक्रम
बौद्ध भिक्षुओं ने एक से तीस तक की गुफाओं का खनन व चित्रण का काम क्रमश: नहीं किया। जहाँ और जब सबसे अधिक उपयुक्त स्थान लगा वहीं से गुफा के निर्माण का कामशुरू कर दिया और फिर दायें-बायें अन्य गुफा के लिए बढते रहे।
कभी-कभी तो स्थान छोड-छोडकर भी नई गुफाओं का निर्माण किया. फिर शेष बची चट्टानों में आवश्यकतानुसार वहाँ पुनः गुफा का निर्माण शुरू कर दिया। चित्र भी उसी समय के हैं, जब गुफाएँ निर्मित की गयी थी
इस प्रकार अजन्ता (ajanta caves) की गुफाओं के निर्माण में निम्न कालक्रम से सभी विद्वान एक मत हैं। अजन्ता (ajanta caves) की गुफाएँ 200 ई. पूर्व से 625 ई. तक बनती रही थीं। सर जेम्स फर्ग्युसन के अनुसार गुफा संख्या एक और दो सबसे बाद की है। जिससे सभी विद्वान सहमत हैं।
गुफा संख्या 9 व 10-200 ई. पूर्व से 300 ई. तक।
गुफा संख्या 8-9 व 10 के स्तम्भ-350 ई. से 400 ई तक।
गुफा संख्या 16 व 17-4थीं व 5 वीं ई. तक (परन्तु अब यहाँ चित्र शेष नहीं है)।
गुफा संख्या 1 व 2-500 ई. से 6 ठी-ई. तक।
बुद्ध शाक्यमुनि का आविर्भाव छठी शती ई.पूर्व में हुआ था। महायान साम्प्रदाय के पश्चात् बोद्ध धर्म में मूर्ति की कल्पना हुई। बुद्ध, बोधिसत्व और उनकी जातक कथाओं ने अजन्ता (ajanta caves) के चित्रण मे बहुत प्रेरणा दी।
अजन्ता (ajanta caves) में बुद्ध बोधिसत्व, जातक कथाओं और बुद्ध को लेकर अनेक प्रतीकों व विभिन्न अलंकरणों का चित्रण हुआ, फलतः वाचस्पति गैरोला ने अजन्ता (ajanta caves) के चित्रों को तीन श्रेणी में विभाजित किये हैं।
प्रथम श्रेणी आलंकारिक चित्र
जिनमें विविध आलेखन है। जैसे विभिन्न फूल-पत्तियां, पुष्पों की बेले. कमलदल, लताएं, वृक्ष, पशु-पक्षी, अलौकिक पशु,
राक्षस. किन्नर, नाग, गरूड, यक्ष, गन्धर्व, अप्सराएँ आदि चित्रणहैं।
द्वितीय श्रेणी – रूप वैदिक
बुद्ध के विभिन्न स्वरूप पद्ममपानी, व्रजपाणि, बोधिसत्व, अवलोकितेश्वर बुद्ध के विभिन्न घटना चित्र, जिम में माया देवी का स्वप्न , महाभिनिष्क्रमण , जीवन के चार सत्य संबोधि निर्वाण और बुध के जीवन की अलौकिक घटनाएं, विवाह, गृहत्याग आदि
तृतीय श्रेणी – जातक कथाएं
विभिन्न जातक कथाएं : जिन्हें भगवान बुद्ध के जीवन से संबंध सर्वविदित घटनाओं का तथा रूप में निरूपण किया गया है जैसे ब्राह्मण जातक, छ: दंत जातक,वेस्संतर जातक, हस्ती जातक, महाक पि जातक , मुखपंख रू-रू जातक आदि कई जातक कथाओं का चित्रण हुआ है
अध्ययन की दृष्टि से अजंता की गुफा संख्या 9- 10 , 16-17,और 1-2 के कुछ चित्रों के अध्ययन वह भी प्रमुख चित्रों का अध्ययन यहां पर्याप्त रहेगा
गुफा संख्या 9
यह एक चैत्य गुफा है, जो ईसा पूर्व प्रथम-द्वितीय शताब्दी में चित्रित की गयी है। बौद्ध भिक्षुओं के उपासना स्थल के रूप में तैयारी की गयी है। गुफा तीन भागों में विभक्त है, पिछला भाग अण्डाकार है, जहाँ एक स्तूप भी है। स्तूप का आकार भी अर्द्धवृत्ताकार है।
इस गुफा का एक प्रसिद्ध चित्र स्तूप पूजा का है। चित्र में लगभग सोलह व्यक्तियों का एक समूह स्तूप ओर जाते हुए दर्शाया है। अर्धवृत्ताकार स्तूप, तोरणद्वार, शहनाई, झाड, मृदंग और वाद्ययंत्रवादक चित्रित हैं। पुरूषों के पहनावें समसामयिक कार्ला के चैत्य की मूर्तियों से मिलते-जुलते हैं। लटू जैसा मुरेठा निकला हुआ है।
आकृतियाँ भारी तथा चोखुटे चेहरे वाली है। एक अन्य चित्र नागपुरूष का है। पर्वत कन्दरा पर दो नागपुरूष वृक्ष की छांव में बैठे हैं। नागराज को पूजा में आये लोगों की बाते सुनते दर्शाया गया है। उड़ती हुई अप्सराऐं चित्र में गति का बोध कराती है। इन चित्रों में तीन-चार सीमित रंगों का ही प्रयोग हुआ है।
जिनमें काला, पीला, हरा और हिरोजी है। सीमित वर्ण विधान और सभी आकृतियां एक जैसी भावविहीन है। आँखें भावशून्य है। चित्रों की बाहय रेखाए काले रंग की बनी है। वृक्षों फलों-फूलों व पशु-पक्षियों का चित्रण रीतिबद्ध ढंग से हुआ है।
गुफा संख्या 10
समय की दृष्टि से यह अजन्ता (ajanta caves) की पहली गुफा के साथ की चैत्य गुफा है जहाँ चित्रों की न्यूनता है जो पिच्चानवे फुट गहरी है और ऊंचाई में छत्तीस फुट है, तथा पीछेसे घोड़े की नाल की तरह है। अन्दर एक स्तूप है।
जिसकी छत भी चपटी न होकर गजपृष्ठ के जैसी है। इसी प्रकार गुफा संख्या 19 में भी एक चैत्य है। इस गुफा के तीन प्रमुख चित्र हैं
छःदन्तजातक बोधिवृक्ष की पूजा के लिए जाता राजा का जुलूस और सामजातक का है। बायीं भित्ति पर चित्रित जुलूस में एक सुन्दरी नागराज के उपर छत्र लिए चल रही है। राजा के साथ और भी कई नारियाँ चलरही है। आगे चल कर स्तूपपूजा दिखाई गई है। एक दूसरे स्थान पर जुलूस को तोरण द्वार के नीचे से जाता हुआ दिखाया गया है।
चित्र में भीड़-भाड़ का अच्छा आभास होता है। छ: दन्तजातक 10 वी गुफा के चित्रण में हाथियों का चित्रण अजन्ता (ajanta caves) के चित्रकारों का प्रिय विषय रहा है। क्योंकि यहाँ दो बार और संख्या 17 में भी एक बार यह विषय चित्रित हुआ है। चित्रकारों ने घने जंगल में हाथियों की विभिन्न मुद्राओं में जलक्रीडा अंकित की है।
पास ही वन में नाना प्रकार के वृक्ष हैं, जिनमें बरगद, गूलर, आम और अन्य विविध वृक्ष चित्रित है। छ.दन्त हस्ति (जिसके छः दाँत है)। हस्ति परिवार कमलताल में जलक्रीडा करते हुए दिखाया गया है। हस्तिराज अपनी हथिनी रानियों को सूंड से कमल पुष्प दे रहा है। कहीं पर हस्ति स्वयं को अजगर से बचाते हुए चित्रित किया है।
यहाँ हाथियों की विभिन्न मुद्राएँ बडी ही रूचिकर अंकित है। हाथियों की स्वाभाविक क्रियाएँ केवल यथार्थात्मक ही नहीं वरन हाथियों की विभिन्न मुद्राओं में कल्पनाशक्ति भी सुन्दर है। कथानक यह है कि एक बार बोधिसत्व का जन्म हाथी के रूप में हुआ था। तब उनका शरीर श्वेत रंग का था और मुख व पैर लाल रंग के थे। उनके छः दाँत थे।
इन विभूतियों के फलस्वरूप वे हाथियों के राजा हो गये। इस हस्तिराज के दो रानियाँ थी चुल्ल सुभद्रा और महा सुभद्रा। एक बार बोधिसत्व हाथी ने जल में नहाते एक कमल महा सुभद्रा को दे दिया तो चुल्ल सुभद्रा यह देख नाराज हो गयी।
इसी तरह एक समय अन्य घटना में बोधिसत्व दोनों रानियों के साथ वन में विचरण कर रहे थे, तब उन्होंने एक शाल वृक्ष को हिलाया तो महा सुभद्रा पर फूल व हरी पत्तियाँ गिरी परन्तु चुल्ल सुभद्रा पर सुखी पत्तियाँ और पेड पर की चीटियाँ गिरी।
चुल्ल सुभद्रा वहीं से बनारस के राजा की पत्नी होकर इस हस्तिराज के छ: दंतो को शिकारियों से मंगवाकर बदला लेने की ठान ली थी अगले जन्म में वे बनारस के राजा की पत्नी हुई और बीमारी के बहाने इसे छ: दंत हाथी के दांत मंगवाती है
और (चित्र ली के बिमारी थी छ.दन्तों संख्या। अगले के 5) को बहाने जन्म शिकारियों इस में वे छ.दन्त बनारस से मँगवाकर हस्ति के राजा के बदला दौत दूसरी ओर सोमोत्तर नाम व्याध जंगल में प्रवेश करता है और छ: दन्तहस्ति बोधिसत्व स्वयं उनके आगे समर्पित हो जाते हैं। अन्तिम दृश्य में व्याध को काशीराज के अन्तःपुर में पहुँचाते दर्शाया है। काशिराज की रानी सुभद्रा पूर्व जन्म में छःदन्त हाथी की हथिनी थी।
अतः ईष्यावश वह छःदन्त गजराज के दाँतों को काटकर लाने की आज्ञा देती है। सोमोत्तर दाँत निकाल नहीं पाता है तो छ: दन्त हस्ति स्वयं ही अपने दाँत निकाल कर दे देते हैं। कटे दाँतो को कहारों के कन्धों पर बहगियों पर लदा देखकर सुभद्रा मूर्छित हो जाती, और रानी का अभिमान नष्ट होजाता है।
राजा, रानी को सहारा देता है। चार दासियां जो पीछे खडी है, अस्त-व्यस्त घबराती हुई है व एक दासी सहारा देने के लिए उत्सुक प्रतीत होती है। अन्य प्रसिद्ध चित्र सामजातक (श्यामजातक) का है।
जिसकी कहानी श्रवण कुमार वाली कहानी से मिलती-जुलती है। इस चित्र में अन्धे माता-पिता की सेवा करने वाले एक नीलवर्ण के युवक श्याम को काशीराज द्वारा तीर से मार देने की कथा का चित्रण है। किन्तु यहाँ वृद्ध माता-पिता के विलाप को सुनकर एक देवी ने मृत श्याम को पुनर्जीवित कर दिया है।
कन्धे पर घड़ा लिये श्याम की आकृति अति सुन्दर है और उसके माता-पिता की आकृति में अन्तःवेदना है। पृष्ठभूमि में भागते हुए हरिणों का अंकन बड़ा ही रोचक है। पहले दृश्य में बनारस के राजा को बाण चलाते हुए दर्शाया गया है। उसके दाहिनी ओर घोडा खड़ा है। राजा के साथ के लोग धनुष, भाले व ढाल लिए हुए हैं।
दूसरे दृश्य में वृद्ध – वृद्धा दिखाये गये हैं। वृद्ध के मूंछे व दाढ़ी है और वह खड़ा है। वृद्ध के मुख पर शोक भाव है। राजा बैठा हुआ क्षमा याचना कर रहा है। राजा का चेहरा नष्ट हो चुका है। संयोजन की दृष्टि से चित्र में परिपक्वता, भाव, सबल रेखांकन, रंग और लालित्व का यह चित्र चित्रोपम तत्वों के मेल का सुन्दर उदाहरण है।
गुफा संख्या 16
यह गुफा सभी गुफाओं के मध्य में स्थित है। यहाँ से सप्त प्रपात भी दिखाई देता है। जो बाघोरा नदी का उद्गम स्थल है। प्रवेशद्वार पर दोनों ओर हाथी उत्कीर्ण हैं। फिर बाँयी ओर सीढियाँ चढकर सामने दीवार पर नागराज की सिंहासनारूढ़ प्रतिमा है।
यह विहार गुफा अजन्ता (ajanta caves) की सुन्दरतम गुफाओं में से है, जहाँ पर सर्वाधिक चित्र है। यहाँ की बायीं दीवार पर प्राप्त अभिलेख के अनुसार इस गुफा का निर्माण 475 ई. से 500 ई. के मध्य ” वाकाटक” राजा हरिसेन के मंत्री “ वराहदेव” द्वारा निर्माण करवा तपोधन-तापसों के निवास हेतु दान स्वरूप दिया था।
वाकाटकों ने नागों और गुप्तों से पारिवारिक संबंध स्थापित किये थे। जिसका भी यहाँ वर्णन है। वाकाटक शासक तथा उनके कुछ मंत्री बौद्धधर्म के अच्छे संरक्षक थे। इस काल में भगवान बुद्ध की प्रतिमा के लक्षणों का भी पूर्ण विकास हो चुका था।
इस विहार में अभी भी बुद्ध के जीवन और जातक कथाओं से संबंधित चित्र कुछ अच्छी स्थिति में मिलते हैं। जिनमें बुद्ध के जीवन संबंधी घटनाओं में ” मायादेवी का स्वप्न”, ” धर्मोपदेश’, ” नन्द की दीक्षा” आदि तथा अन्य जातकों में ” हस्ति जातक” “ महा उमग्ग जातक”, ” नन्दकुमार का वैराग्य” एवं विभिन्न आलेखन चित्रित है।
हस्तिजातक, महाहंस जातक, महाकपिजातक, सिंहलावदान की कथा, मृगजातक, यहाँ की प्रमुख चित्रित जातक कथाएं हैं। ” सौन्दरानन्द” अश्वघोष के इस नाटक के कथानक का चित्रण यहाँ खूब हुआ। बुद्ध अनुज नन्द और उसकी पत्नी सुन्दरी के इस कथानक को लेकर गुफा संख्या सोलह में बड़ा ही सुन्दर चित्रण हुआ है।
कहा जाता है कि संघ में नन्द बहुत दुःखी रहता था। बुद्ध को जब पता चला कि अपनी नवविवाहिता पत्नी के प्रति आसक्ति के कारण नन्द उदास रहता है तो बुद्ध उसे स्वर्ग ले गये। वहाँ अप्ससराओं को देखने के उपरान्त नन्द का भ्रम जाता रहा। सौन्दरानन्द चित्रण में सबसे पहले श्वेत परिधान में भिक्षा पात्र लिए हुए, बुद्ध दिखाए गये हैं। उनका सिर कुछ झुका हुआ है और आँखों से करूणा टपक रही है। पास ही
एक घोड़ा सईस और नौकर खड़े हैं। अन्य दृश्य में राहुल और यशोधरा खोजो बुद्ध के पुन लौटने की प्रतीक्षा में है मरणासन्न राजकुमारी का चित्रण भी सौन्दरानन्द कथा का एक भाग है। इस गुफा में बीस स्तम्भ है एवं मण्डप के तीनों ओर साधुओं के निवास हेतु चौदह कोटड़ियाँ है। छत की खुदाई साँची से साम्यता रखती हुई है तथा उच्चकोटि के कलात्मक दृश्य भी यहाँ देखने को मिलते हैं।
मरणासन्न राजकुमारी -इस गुफा में एक अन्य उत्कृष्ट चित्र मरणासन्न राजकुमारी के नाम से विख्यात है। इस चित्र के पहले दृश्य में दो व्यक्ति खड़े है। उनमें एक के हाथ में मुकुट है, जिसकी मुद्रा शोक में लिप्त है। दूसरा व्यक्ति राजकुमारी से कुछ कह रहा है। यह चित्र मरणासन्न राजकुमारी का ना होकर विरहासन्न राजकुमारी का है,
जो नन्द की पत्नी सुन्दरी है और वह राजमुकुट नन्द का मुकुट है, जिसे देखकर सुन्दरी समझ लेती है कि अब जीवन पर्यन्त विरह के सिवा कुछ नहीं है। जिसमें करूणा भाव की श्रेष्ठता है। चित्र में एक उच्च कुलीन महिला ऊँचे आसन पर सिर लटकाये, अधखुले नेत्रों और शिथिल अंगों से अधलेटी हुए अंकित है। उसके पीछे एक दासी।
उच्च कुलीन महिला ऊँचे आसन पर सिरलटकायें, अधखुले नेत्रों और शिक्षित अंगों से अधलेटी अंकित है। उसके सहारा देकर उसे उठा रही है। अन्य दासी अपना हाथ उसकी छाती पर रख कर मानो श्वास परीक्षण कर रही है। उसकी मुखमुद्रा अशान्त और गम्भीर एवं
चेहरे पर अनहोनी का भाव प्रदर्शित है। एक अन्य दासी पंखा डुला रही है। नीचे की ओर कुछ पारिवारिक सदस्य बैठे हैं, जो राजकुमारी के जीवन के प्रति बड़ी आशाओं से देख रहे हैं। यहीं
एक स्त्री अपना मुहँ छिपाकर रुहन कर रही है। पास ही एक सेवक और एक परिचारिका खड़ी है, जिसके हाथ में एक ढका हुआ पात्र है, प्रतीत होता है जिसमें औषधी है। दाहिने हाथ की
अंगुलियों से वह यह संकेत कर रही है कि औषधि दो बार देनी है। यह चित्र बुद्ध के भाई नन्द की पत्नि ” सुन्दरी’ का है, कि नन्द बुद्ध भिक्षु बन जाने पर अपना राज मुकुट एक सेवक के
साथ सुन्दरी के पास इस अभिप्राय में भेजता है कि वह भिक्षु बन गया है। सफेद टोपी लगाये सेवक मुकुट लिए द्वार पर खड़ा है। सामने की ओर दो स्त्रिया है, जिसमें से एक फारसी टोपी पहने है।
इस प्रकार सम्पूर्ण चित्र करुणा की मार्मिक अभिव्यक्ति है। इस चित्र के लिए ग्रिफिथ्स महोदय ने लिखा है कि ” फ्लोरेन्स का चित्रकार इससे अच्छा रेखांकन कर सकता था
वेनिस का चित्रकार इससे अच्छे रंग लगा सकता था, किन्तु दोनों इससे अधिक सुन्दर भाव अभिव्यक्त नही कर सकते थे। सोलहवी गुफा में अन्य ढेर सारे चित्र है, जिनमें बुद्ध वैराग्य
कारण चार दृश्यों वृद्ध पुरुष, वृषभताडन्त्र, सन्यासी और शव का चित्र है। ” अजातशत्रु और बुद्ध की भेट बुद्ध की पाठशाला’ बुद्ध का धनुर्विद्याभ्यास, युद्ध के सम्मोहन बहुत ही सुन्दर बुद्ध के गृहत्याग का है।
” माया देवी स्वप्न दृश्य के ऊपर बुद्ध जन्म का चित्रण है। इसमें जन्म लेते ही सात पग चलने वाली कथा को सात कमलपुष्पा के प्रतीक में चित्रित किया है।
” सुजाता की खीर “” राजगृह की गलियों में भिक्षापात्र लिये बुद्ध ” आषाढ में गौतम की प्रथम तपस्या’ आदि अनेक कथात्मक चित्र यहाँ है। जातक कथाओं में यहाँ ” हस्तिजातक और महाउमग्गजातक की कथाएँ चित्रित है।
हस्तिजातक का चित्रण बहुत ही मनोहारी है। इसमें राजा द्वारा निर्वासित सात सौ भूखे-प्यासे लोगों के शोरगुल के कारण बोधिसत्व स्वयं उनके पास आते हैं, जो एक बहुत शक्तिशाली हाथी थे। स्वयं को भूखों की भूख मिटाने के लिए पहाड़ी से गिरा कर मार देते हैं और मृत हाथी से भूखे अपनी भूख बुझा लेते है
इस चित्र के पहले दृश्य में बोधिसत्व विशाल हाथी, सभी को पहाड़ी के नीचे जाने को कहते हैं, फिर दूसरे दृश्य में बोधिसत्व हाथी एक मृत अवस्था में है। दो पथिक छुरियों से हाथी के माँस को काटते हुए दर्शाया है। अन्य पथिक को मॉस पकाते हुए दर्शाया है। आगे सभी लोगों को जाते हुए दर्शाया गया है।
यहाँ उमग्ग जातक में” महोसघ नाम के बालक का स अपना-अपना पुत्र होने का अधिकार दो स्त्रियाँ एक साथ व्यक्त एवं करती है, तो बुद्ध इसके समाधान हेतु जब बच्चे के दो टुकड़े करने व एक-एक टुकड़ा दोनों स्त्रियों को देने का प्रस्ताव रखते है तो, असली माँ बच्चे पर अपना अधिकार छोड़ने को तैयार हो गयी। इस दृश्य का उमग्ग जातक में चित्रण है।
गुफा संख्या 17
यह चैत्य गुफा सबसे सुरक्षित रही है. इस गुफा का निर्माण वाकाटक वंश के राजा हरिसेन के एक श्रद्धालु मण्डलाधिपति ने करवाया था। इस गुफा में सोलहवीं की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण के चित्र हैं, जो सुरक्षित भी हैं। जिनमें जातक कथाओं की बहुलता है।
डॉ. वर्गेस ने इस गुफा में इक्कीस सुरक्षित अच्छे दृश्यों का है। जिक्र किया है। इस गुफा के प्रसिद्ध दृश्य, छ.दन्त जातक, हस्ति जातक, मातृपोषक जातक, व्यग्रोधमृगजातक, सामजातक, शिविजातक वेस्सान्तर जातक, महाहंस जातक महिप जातक, सिंहल अवदान, मच्छजातक,
महासुतसोम जातक, आठ पापों से बचने के लिए बुद्ध का उपदेश, नीलगिरी प्रकरण, जीवन कूप मैत्रेय और मानुषी बुद्ध, श्रावस्ती का चमत्कार, बुद्ध का संघ को उपदेश यहां के प्रसिद्ध चित्र है एक गुफा के स्तंभों और छतों पर गंधर्व, अप्सराएं, कमल दल और सुंदर आलेखन भी खूब है
इस गुफा में एक अद्भुत चित्र बुद्ध का संघ को उपदेश का है जो एक सिंहासन पर प्रलंबपाद मुद्रा में बैठे हुए है चित्र मैं बुद्ध को तूषित स्वर्ग में अपने अंतिम जन्म है तू अवतरित होते हैं चित्र अंकित किया है
इसमें बहुत सी आकृतियां और बुध की मुखमुद्रा नष्ट हो चुकी है परंतु उनके अनुयायियों की आकृतियों को कम ही क्षति पहुंची है सभी आकृतियों में एकाग्रचित्रता भक्ति और दिव्या भाव प्रचुरता से अंकित है
इनके अतिरिक्त हस्तिजातक, महा उमग्ग जातक, नन्द का भिक्षु होना, श्रावस्ती का चमत्कार, हाथियों का जुलूस, बुद्ध का संघ को उपदेश, बुद्ध जीवन की घटनाएं, मायादेवी का स्वप्न, सुजाता की कहानी आदि चित्रित है।
राहुल समर्पण-राहुल समर्पण यहाँ का एक प्रसिद्ध चित्र है। गुफा का बायीं दीवार पर यह प्रसिद्ध चित्र अंकित है। संयोजन और कथानक दोनों ही दृष्टि से इसका बहुत महत्त्व है। बुद्धत्व प्राप्ति के बाद गौतम जब पहली बार कपिलवस्तु आते है, तो भिक्षा के लिए यशोधरा के सम्मुख पहुँच जाते हैं। यशोधरा अपने पति को क्या दे?
जब अपना सर्वस्व पति विश्वगुरू बुद्ध स्वयं भिक्षु बनकर सामने उपस्थित हो। तो यशोधरा अपना सर्वस्व एकमात्र निधि पुत्र ” राहुल” बुद्ध को समर्पित कर देती है। चित्रकार ने इस चित्र में राहुल के मुख पर अबोधता व आध्यात्मिकता के भाव बहुत ही सुन्दरता से चित्रित किये हैं।
राहुल और यशोधरा को सामान्य मानवीय आकार और बुद्ध का वृहद् आकार में बनाकर उनके प्रभुत्व को प्रदर्शित किया गया है। यहां विश्व संरक्षक के रुप में बुद्ध को विशाल रूप में बनाया है इस प्रकार संयोजन के सिद्धांतों की दृष्टि में भी यह महत्वपूर्ण चित्र है
वेस्सान्तर जातक – वेस्सान्तर जातक की कथा सत्रहवीं गुफा में बडे ही रोचक ढंग से चित्रित की है। बोधिसत्व एक बार बेस्सान्तर के रूप में पैदा हुए थे। दान में उनकी बराबरी करना असम्भव था।
वह मना करना जानते ही नहीं थे। लोगों ने उनकी दानशीलता की खूब परीक्षा ली। एक बार राजकुमार बेस्सान्तर को ही भिक्षा में माँग लिया जाता है। वेस्सान्तर अपनी पत्नी माद्री को राज्य से अपने निष्कासन का दुखद सन्देश सुना रहे हैं। चित्र में राजा आसन पर भावपूर्ण मुद्रा में बैठे है।
सामने एक असुन्दर भिक्षु कुछ भिक्षा याचना कर रहा है। उसकी याचना में सम्पूर्ण राजपरिवार आश्चर्यचकित है। राजा के पीछे बेठी स्त्रियाँ चिन्तित है। राजा की दानशीलता का यश सुनकर भिक्षु राजकुमार यज्ञ में बलि के लिए भिक्षा में चाहता है, राजकुमार भी तैयार है।
पीछे एक सेवक राजा के संकल्प लेने हेतु जलपात्र लाया है अगले दृश्य में राजकुमार विदा लेने को तत्पर दोनों हाथ जोडे बेटे है। माँ, दासी व चार सेवक आदि दुखित मुद्राओं अकित है। इसके अगले दृश्य में पुत्रों के साथ नगर से जाते
कुमार अंकित है, जिसकी पृष्ठभूमि में बाजार का दृश्य चित्रित है।
वेस्सान्तर जातक-अगले दृश्य में कुमार भिक्षुओं को अपने रथ और अश्व को देकर पैदल जाते हुए चित्रित है। उसके आगे जुजुक ब्राम्हण कुमार के दोनों बालकों को भिक्षा में माँगते हुए दर्शाया गया है।
कथा के अन्त में कुमार वैस्सानार को वापिस लौटते हुए चित्रित किया गया है। रानी पारदर्शी चोली और पारदर्शी ओढनी पहने है। चित्र में हस्तमुद्राएँ और भाव भंगिमाएँ प्रभावी है।
रेखाएँ सबल और प्रवाहमयी है विशेषरूप से भिक्षुओं के कुरूप चेहरें, गंजे सिर, मुंह से बाहर निकलते दाँत और भारी ठूड्डी आदि का सूक्ष्मता से चित्रण हुआ है। इस चित्र के दूसरे दृश्य में कुमार बेस्सान्तर का पिता संजय और माता पुषति से विदा लेने का दृश्य है।
कुमार बेस्सान्तर अपने दोनों हाथ जोड़कर बैठे हैं। पुषति करूणा से अपने पुत्र की ओर देख रही है। पास ही अनुचर बड़े ही दुखद मुद्रा में चित्रित किये हैं। इस चित्र के दूसरे दृश्य में कुमार बेस्सान्तर का पिता संजय और माता पुषति से विदा लेने का दृश्य है।
कुमार बेस्सान्तर अपने दोनों हाथ जोड़कर बैठे हैं। पुषति करूणा से अपने पुत्र की ओर देख रही है। पास ही अनुचर बड़े ही दुखद मुद्रा में चित्रित किये हैं। इस गुफा के बाहर बरामदे में उड़ते हुए गन्धर्व-अप्सराएं तथा इन्द्र का चित्रण है।
एक और सुरापान का दृश्य है। दाँई ओर आकाश में उड़ती हुई अप्सराएं चित्रित है, जिनके अधिकांश रंग उड गये है। यहाँ अर्धवृत्तों और फुल्ले का आलेखन बना है। जो बरामदे को अलंकृत रूप देते हैं।
गुफा संख्या 1
गुफा संख्या एक और दो, समय की दृष्टि से अजन्ता (Ajanta caves) की सबसे बाद की बनी गुफाएँ हैं। जो 500 ई. से 625 ई. बनी है। इसके कुछ चित्र वाकाटक काल के अन्तिम वर्षों में और कुछ चित्र चालुक्य राजाओं के समय के बने हैं। चालुक्य काल में अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों में पतन प्रारम्भ हो चुका था।
बुद्ध को राजसी वैभव के साथ अलंकृत चित्रित करने लगे और जातक कथाओं के आध्यात्मभाव ने सम्राटों के वैभवपूर्ण जीवन संबंधी चित्रों का स्थान ले लिया था। गुफा संख्या एक विहार गुफा है, चौसठ खम्भो की सहायता से चौसठ फुट गहरी है।
बौद्ध भिक्षुओं के निवास हेतु इसके अन्दर 14 कोठरियाँ हैं जिनमें भिक्षु रहते थे। इसके खम्भों पर सुन्दर खुदाई की गई है तथा गर्भगृह में बीस फुट चौडे चबूतरे पर ” भगवान बुद्ध की धर्मचक्रप्रवर्तक मुद्रा” में एक विशाल प्रतिमा बनी है, जिसके चारों ओर सृष्टि के तमाम जीवों को संयोजित किया गया है।
यहाँ के प्रमुख चित्रों में “ पद्मपाणि अलोकितेश्वर’, ” मारविजय”. ” नागराज की सभा’, ” ब्रजपाणि”, ” शिविजातक”, ” श्रावस्ती का चमत्कार”, “ महाजन का वैराग्य”, “ नन्द तथा सुन्दरी का दृश्य”,“ चालुक्य राजा पुलकेशियन द्वितीय के दरबार में इरानी राजदूत’ ” नृत्यवादन’, “ चम्पेय जातक”, ” बैलों की लडाई” तथा कई अलंकरण जिनमें कमल पुष्प, हँस, किन्नर-युगल आदि को अलंकरण की दृष्टि से ही बनाये गये हैं।
बोधिसत्व “ पद्मपाणि अवलोकितेश्वर” और ” मार विजय” गुफा संख्या एक के सर्वाधिक प्रसिद्ध चित्र है।

पद्मपाणि अवलोकितेश्वर -गुप्त कालीन विष्णु का प्रभाव लिये यह आकृति बुद्ध की असीम विश्व करूणा को व्यक्त करती है। उनकी भाव मग्न आँखे नीचे हाथ में लिए कमल पुष्प का अवलोकन कर रही है।
चित्र में घुटनों के नीचे का भाग चित्रित नहीं है। एक उच्च स्तरीय शास्त्रीय शैली का यह चित्र कुछ ही रेखाओं द्वारा कंधों और बाहुओं के मनोहारी चित्रण से परिपूर्ण है। आकार सौन्दर्य और रेखीय प्रभाव अद्भुत है।
चित्रकार का तूलिका पर अधिकार है, उसने केवल एक ही रेखा से दोनों भोहें बना दी है। रेखा में प्रवाह और बल है। गले में मोतियों की माला और सिर पर मुकुट गुप्तकालीन बारीकी से अलंकृत है। लावण्य से परिपूर्ण भगवान बुद्ध की यह अलौकिक त्रिभंग मुद्रा 59 ” x 2′ 5 ” की साइज में आमदकद से भी बड़ी है।
सजीवता लिए हुए इस चित्र में गति का अद्भुत प्रभाव है। चित्र की पृष्ठभूमि में कई आकृतियाँ चित्रित है जिनमें विभिन्न पशु-पक्षी, नाना पुष्प-लताएं काल्पनिक देव-किन्नर आदि बोधिसत्व के चारों ओर आनन्दभाव से विचरण कर रहे हैं। निकट ही यशोधरा खड़ी है।
सम्पूर्ण चित्र में देवत्व और दिव्य भाव है, चित्र में कमल के समान माधुर्य है। मुख्य आकृति की सभी सहायक आकृतियाँ इस प्रकार निर्भय है, मानो वे अपने महान संरक्षक से आश्वस्त होने कर सृष्टि में विचरण हेतु निर्द्वन्द्व हो गयी है।
धार्मिक और कलात्मक दृष्टि से यह अजन्ता (Ajanta caves) का एक उत्तम चित्र है। बोद्धिसत्व ” पद्मपाणि” में गढ़नशीलता का सशक्त प्रभाव है। आकृति में यथार्थवादी परिप्रेक्ष का पालन नहीं है, मगर एक शास्त्रीय आदर्श परिप्रेक्ष्य है।
मांसलता की अपेक्षा जीवन्तता पर विशेष बल दिया गया है। बौद्धिसत्व की आकृति एक कुलीन युवा पुरूष में सौम्य व भावयुक्त मुद्रा है। सशक्त पुरूषोचित अंग, स्फीतवक्ष, सुष्ठु ग्रीवा, विशाल ललाट, विशाल नम्र नेत्र, छोटे मगर पुष्ठ ओष्ठ, सरल नासिका किंचितवक्र भूचाप, चुनिन्दा अंलकृत आभूषण और स्कंधों पर फैले केश अलौकिक भाव को व्यक्त करते हैं।
इस चित्र में कुछ ही रेखाओं से सौम्य और दिव्य भाव प्रदर्शित कर दिये हैं। इस चित्र को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि बोधिसत्व एक भव्य, आत्मत्याग और विश्व कल्याण की भावना को प्रकट कर रहे हैं।
मारविजय-इस गुफा का अन्य प्रसिद्ध व प्रतिनिधि चित्र मार-विजय का है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध को जब ज्ञान प्राप्त होने वाला था, तब उनकी परीक्षा के रूप में अनेक कष्ट और प्रलोभनों ने उन्हें आ घेरा। इन सभी को ” मार” (कामदेव) की सेना कहा गया है।
इन्होंने भगवान बुद्ध को अनेक प्रकार से विचलित करना चाहा था, परन्तु बुद्ध ने उन्हें निष्प्रभावी कर के अपने ध्येय पर विजय प्राप्त की थी। तपस्यालीन बुद्ध पर एक भयानक आकृति तलवार चला रही है।
जिस प्रकार कमल पत्र जल में रहने पर भी गीला नहीं होता है ठीक उसी प्रकार बुद्ध इस संसार के मध्य निर्विकार भाव से सांसारिक दुःखों को दूर करने के लिए भूमि को साक्षी बनाकर सुखासन मुद्रा में ध्यानलीन है।
पृष्ठभूमि में बोधिवृक्ष चित्रित है। यह एक आध्यात्मिक चित्र है। चित्र संयोजन में केन्द्रीयता का पालन किया है। ” श्रावस्ती का चमत्कार” में बोद्धिसत्व ने स्वयं को आचार्यों की पंक्ति में सिद्ध करने के लिए श्रावस्ती के राजा प्रसेनजीत की उपस्थिति में कई चमत्कार दिखाए।
जिसमें एक चमत्कार में उन्होंने अपने को अगणित बुद्धरूपों में प्रकट किया था। एक भित्ति पर चम्पेय जातक कथा का चित्रण है। अपनी पूर्वजन्म की इच्छा के कारण बोधिसत्व नागलोक में राजा चम्पेय (नागराज) के रूप में जन्में।
धन और ऐश्वर्य से शीघ्र ही उनका मन भर गया और दूसरों के उपकार के लिए अपने जीवन का उत्सर्ग करने का निश्चय कर, वे चींटियों के बिल पर जा कर लेट गये, जिससे चीटियाँ उनकी देह का भक्षण करके अपना पेट भर सके।
परन्तु एक सपेरा नाग को पकड़ लेता है और अपना जीवनयापन करता है। दो बैलों का युद्ध तथा अन्य गुफाओं की भाँति इस गुफा की छत पर बड़े ही सुन्दर अलंकरण है, जिनमें लताएँ, पुष्प, पशु-पक्षी आदि विभिन्न आयताकारों में चित्रित है।
गुफा संख्या 2
गुफा संख्या दो के मुख्य चित्रों में “ माया देवी का स्वप्न‘, ” बुद्ध जन्म“, ” महाहंस जातक”, ” श्रावस्ती का चमत्कार‘, “ पूर्णावादन जातक”, ” विदुर पण्डित जातक’ ” रूरू जातक”,” क्षान्तिवादी जातक”, ” सर्वनाश”, ” प्राणों की भिक्षा’, ” पूजार्थिनी स्त्रियाँ”, ” सुनहरे मृग का उपदेश’ आदि प्रसिद्ध चित्र हैं।
गुफासंख्या दो भी, इसकी पड़ोसी गुफा एक के समकालीन रही है। इसके मुख्य चित्रों में माया देवी का स्वप्न, बुद्धजन्म, महाहँस जातक श्रावस्ती का चमत्कार, पूर्णावादन जातक, विदुर पण्डित की कथा, रुरु जातक, क्षान्तिवादी जातक,
सर्वनाश-,प्रसिद्ध प्राणों की चित्र भीक्षा है।
पूजार्थिनी स्त्रियाँ, सुनहरे मृग का उपदेश आदि प्रसिद्ध चित्र है
महाहंस जातक गुफा की डा दाहिनी और चित्रित है जिसमें हंस के रूप में बोधिसत्व बनारस के राजा रानी को धर्म उपदेश दे रहे हैं बोधिसत्व हंस को बनारस की रानी खेमा ने पकड़ कर मंगवाया था ।
माया देवी का स्वपन, बुद्ध के जन्म के चित्रों के नीचे माया देवी का शयन कक्ष है जहां श्वेत हाथी को माया देवी ने अपने गर्भ में प्रवेश करते देखा था इस चित्र में कलाकार ने सफेद गोलाकार को प्रताप पूंज के रूप में स्वप्ने की कथा का निरूपण किया है ।
ऊपरी भाग में माया देवी अपने पति शुद्धोधन को स्वपन की जानकारी दे रही है अग्र भाग में दो ब्राह्मण ज्योतिषी मानों स्वपन का विश्लेषण कर रहे हैं उनके चारों ओर दास दासी या खड़े हैं जिनके अंगभंगिमाए भी कुछ निर्णायक भालू को दर्शाती है गर्दन झुकी हुई ।
अंगुलियों से गिनती में मग्न हैं शरीर का ऊपरी भाग स्तंभ से स टा है अनुमान है कि यह चित्र बुद्ध की विमाता महा प्रजावति का है जो गिनती लगा रही है की बुध जन्म के कितने दिन शेष हैं ।
इस चित्र में कलाकार ने भूलवश दोनों पैर के अंगुलियाँ एक जैसी बना दी है जिसके कारण यह आकृति दो बायें अंगूठे वाली रमणी के नाम से प्रसिद्ध है अगले दृश्य में शाल वृक्ष की डाल पकड़े माया देवी खड़ी है 3 नेत्र वाले इंद्र ने नवजात शिशु को ग्रहण कर रखा है उपवन के बाहरी और भिखारियों की भीड़ लगी है।
जो बुद्ध जन्म पर भीख लेने को आतुर है इस गुफा में तूषित स्वर्ग में बुद्ध को सिंहासन पर बेटे भव्य रूप में चित्रित किया है बुद्ध का एक हाथ धर्म चक्र मुद्रा में हैं और प्रभामंडल से मुखाकृति को देवतरूप में दर्शाया गया है सिंहासन के दोनों ओर सुंदर आलेखन है पास में खड़ी देवताओं की आकृतियां बुद्ध को बड़े सम्मान से देख रही है ।
सर्वनाश – एक गुफा मैं एक अन्य चित्र सर्वनाश के नाम से जाना जाता है चित्र में एक वृद्ध भिक्षु का बायाँ हाथ ठोड़ी से टीका चिंता की मुद्रा में लगा है और दॉया हाथ इस प्रकार घुमा हुआ है मानो सब कुछ नष्ट हो गया हो
आंखों से और मुख़ मुद्रा से भी यही कुछ प्रकट हो रहा है चित्र अत्यधिक क्षत-विक्षत हो जाने के कारण विषय वस्तु की सही सही जानकारी नहीं दे पाता है किंतु यह निश्चय है कि यह वृद्ध या तो बुद्ध के गृह त्याग पर पश्चाताप कर रहा है या फिर कोई भिक्षु बुद्ध के निर्वाण का संदेश लाया है
इस गुफा में दाहिनी दीवार पर पूर्णक और इंद्ररवती की प्रेम कथा भी चित्रित है उद्यान में झूले पर झूलती हुई राजकुमारी इंद्ररवती के शरीर का कौमार्य और लावण्य अति ही सुंदर है आंखों का स्वप्निल भाव बखूबी से कलाकारों ने चित्रित किया है
इंद्ररवती रस्सी को बड़े ही स्वाभाविकता से पकड़ रखा है रस्सी की गोलाई झूले में गति का आभास दिखाती है कतिपर्यंट अनावृत शरीर में कौमार्य की बड़ी कुशलता से व्यंजना की गई है।
संपूर्ण चित्र प्रणय प्रभाव लिए हुए हैं दूसरे भाग में लटठे के सहारे खड़ी इंद्ररवती अपने प्रेमी पूर्णक से लज्जा पूर्वक बातचीत करती दिखाई गई है इन सभी का मुख्य मुद्रा पर स्पष्ट प्रभाव है ।
अजंता की गुफाओं के चित्रों का यह वर्णन तो उदाहरण है यहां तो सैकड़ों जातक कथाएं चित्रित है बुद्ध रूप चित्रित है स्थान स्थान पर गंधर्व, यक्ष, किन्नर एवं मानवीय मिथुनों का अंकन है अनेक पशु पक्षियों का नाना मुद्राओं में मनोरम चित्रण है ।
अनेकों प्रकार के वृक्षों उनके पत्र पुष्पो और फलों को कथा प्रसंगों के अनुरूप तो कहीं कहीं स्वतंत्र सौंदर्य के लिए आलेखनो में चित्रित किए गए हैं मानव आकृतियों के विभिन्न रूप, विशेषत नारी आकृतियां चित्रों में अन्यत्र देखने में दुर्लभ है ।
इसके अतिरिक्त और भी कई सौंदर्यमय आ कृतियां होंगी सौंदर्य पूर्ण संयोजन रहें होंगे दिन के बारे में हम अज्ञात है और कलामर्मज्ञों व कला रसिकों के अज्ञात में ही नष्ट हो गए हैं ।
अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों की विशेषताएं
अजन्ता (Ajanta caves) में लगभग आठ सौ वर्षों तक समयानुसार खनन और चित्रण का काम हो रहा था। फलतः यहाँ के चित्रों पर कई प्रकार का प्रभाव पड़ा। सर्वाधिक सुन्दर चित्रण वाकाटक काल का है और अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों की विशेषता इसी काल में बने चित्रों की विशेषता अजंता के चित्रों की विशेषता स्थापित हुई है।
अजन्ता (Ajanta caves) अपने चित्रगत कई विशेषताओं के कारण सर्वप्रिय और विश्वप्रसिद्ध है।
रेखा -रेखा का असाधारण अधिकार, रंग विधान, नारी का लावण्य मय अद्वितीय चित्रण, विषय वैविध्य, त्रिभुवन संपुजन, विभिन्न शारीरिक और हस्त मुद्राएं और भावभंगिमा, भवन, काल्पनिक परिप्रेक्ष्य, केशविन्यास, मुकुट-वस्त्राभूषण, आलेखन आदि का कला सिद्धान्तों से चित्रण, अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों को कई विशेषताओं से भर देता है।
रेखा भारतीय चित्र रेखा प्रधान है और अजन्ता (Ajanta caves) इसका सजीव प्रमाण है। अजन्ता (Ajanta caves) की सजीव रेखाएं चित्रों को चंचल बना देती हैं, निर्जीव चित्रों को भी वाचाल बना देती है।
कलाकार आवश्यकतानुसार अपनी रेखा को कोमल, कठोर, गोलाई, डील-डोल ही रेखाओं से निर्मित नहीं किये बल्कि स्थितिजन्यलघुता, बल उभार, गति जैसे भाव भी रेखाओं द्वारा ही दे दिये हैं।
पर्सी ब्राउन ने पूर्वी देशों की चित्रकला को विशेषतः रेखा की चित्रकला और पाश्चात्य को छाया-प्रकाश का प्रभावी बताया है। अजन्ता (Ajanta caves) की अधिकांश रेखाएं अटूट, प्रवाहमय और भावप्रणव है।
हस्तमुद्राओं का चित्रण अजन्ता (Ajanta caves) के इसी ज्ञान का एक प्रमाण है, जिनमें हाथों से ही सारे भाव स्पष्ट करने की क्षमता है। अजन्ता (Ajanta caves) की रेखाओं में भावाभिव्यक्ति में भी बहुत बड़ा काम किया है।
इन रेखाप्रधान चित्रों को गढनशीलता के लिये छाया-प्रकाश की आवश्यकता नहीं है। “ पद्मपाणि अवलोकितेश्वर’ में कुछ ही रेखाओं में सौम्य और दिव्य भाव प्रदर्शित कर दिये हैं।
बुद्ध की मुखमुद्रा में दुःख, चिन्तन, सोम्य, शोकभाव एक ही रेखा में अंकित कर दिये हैं। हाथियों की विभिन्न मुद्राएं, सर्वनाश और दयायाचना जैसे अजन्ता (Ajanta caves) के अधिकांश चित्र रेखाप्रधान ही तो हैं। अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रकारों ने भिन्न-भिन्न रूपों, चरित्रों तथा विभिन्न भावों को रेखा के द्वारा सफलता से अभिव्यक्ति किया है।
अजन्ता (Ajanta caves) की अधिकांश हस्तमुद्राएं रेखाप्रधान हैं, जो अभिव्यक्ति को सरल कर देती है। आकृतियों की भंगिमाएँ हो या फिर कुछ अन्य सभी को हस्तमुद्राओं द्वारा कुछ ही रेखाओं में चित्रकारों ने आकृतियों को बोलती हुई बना दी है। इन रेखाओं ने अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों को चिरस्थायी बना दिये हैं।
रंग विधान-वैसे तो समय के प्रभाव ने अजन्ता (Ajanta caves) के रंगों को भी धूमिल किया है, फिर भी अधिकांश स्थानों पर रंगों में अपना ओजरंगों में अपना ओज मिलता है रंगों का सोष्ठव आभा और माधुर्य अच्छा है अजंता के चित्रों का रंग विधान भी अलौकिक है
यहाँ आला-गीला चित्रण विधान न होकर सूखी दीवार पर टेम्परा पद्धति से चित्रण हुआ है। अमिश्रित रंगों को छाया-प्रकाश रहित पद्धति से लगाये गये हैं। इतने लम्बे समय के बाद भी अधिकांश रंग आज भी अपनी ताजगी दर्शाते हैं। अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों में स्थानीय खनिज रंगों का प्रयोग हुआ है।
प्रायः अपारदर्शी, सफेद, लाल विभिन्न तान लिये हल्के व गहरे रंग, जो चूने के क्षारात्मक प्रभाव से भी सुरक्षित रह सके हैं। रामरज का पीला रंग, लालरंग के लिये मों गेरू और हिरौंजी, काले के लिये काजल, लालिमा लिए भूरा, लोह (अयस्क) से प्राप्त खनिज रंग हैं।
हरा रंग एक स्थानीय खनिज से बना है जो संगसब्ज टेरावर्ट ग्रीन है। नीला रंग फारस से आयात किया हुआ लेपिस लाजुली है। इन रंगों को गोंद व स्थानीय वनस्पतिक पायस के साथ तैयार किया जाता था।
अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों में रेखाचित्रण करके प्रायः सपाट रंग भर दिये जाते थे और फिर लावण्यमयी रेखाओं द्वारा आकार निर्मिति कर दी जाती थी। कई स्थानों पर अजन्ता (Ajanta caves) के रंग मनोवैज्ञानिक प्रभाव वाले हैं।
अत्यन्त गौरवर्ण को गुलाबी रंग से, तो दर्पण में देखती युवा सुन्दरी को हरे रंग से दर्शाया है जो ताजगी के साथ-साथ एक प्रतिकात्मक प्रभाव भी देता है। इस प्रकार रंग भी अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों में अपनी विशेषताएँ रखते हैं।
नारी चित्रण– अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों में नारी चित्रण सौन्दर्य का प्रतीक है, जो यहाँ की प्रमुख विशेषता है। धर्म के आवेश में भी अजन्ता (Ajanta caves) के ये चित्रकार नारी के महत्त्व का भूले नहीं थे।
जीवन के सभी प्रसंगों में नारी पुरूष की सहचरी रही है। किसी चित्र में वह प्रयेसी बनकर प्रेमी को प्रणय का दान देती है, जो अन्यत्र माता बन सृष्टि की श्रृंखला को निरन्तरता देती है। माँ, रानी, दासी, पत्नी, पुत्री, सखी सहचरी-अनुचरी जैसे नारी के विविध रूप अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रकारों ने जीवन्त चित्रित किये हैं।
चित्रकारों ने हर जगह नारी चित्रण को सौन्दर्य रूप में ला रखा था, चाहे वह कथा से सम्बन्धित हो अथवा न हो। अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों को देखकर लगता है कि सौंदर्य से परे नारी का चित्रण करना उन्हें पसंद ही नहीं था।
इसी कारण गुफा संख्या 2 में ” दण्ड पाती हुई युवती” के चेहरे को, इस डर से छिपा ही दिया कि प्रसंगानुकूल मनःस्थिति चेहरे पर कुरूपता न ला दे। नारी सौंदर्य के प्रति इतनी गहरी आस्था कहीं अन्यत्र देखने को नहीं मिलती है।
अजन्ता (Ajanta caves) के नारी चित्रण के लिये कला समीक्षक ग्लेड स्टोन सोलोमन ने लिखा है ” कहीं भी नारी को इतनी पूर्ण सहानूभुति व श्रद्धा प्राप्त नहीं हुई है।
अजन्ता (Ajanta caves) में यह प्रतीत होता है कि उसे विशिष्टता के साथ नहीं बल्कि एक सारतत्व के रूप में निरूपित किया है। वह कोई व्यक्तिगत पात्र नहीं है, वह तो एक नियम है, वह वहाँ एक नारी ही नहीं, अपितु समस्त विश्व के सृजन व सौन्दर्य का अवतार है।
” इन चित्रकारों को जहाँ भी सौन्दर्य की आवश्यकता हुई तों इन्होंने अपनी श्रेष्ठता का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिये नारी को अगणित रूपों में चित्रित कर दिया है। इस प्रकार नारी चित्रण अजन्ता (Ajanta caves) की चरम उपलब्धि है।
अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों में नारी का आवृत-अनावृत तथा अर्धआवृत जैसी विभिन्न स्थितियों का समावेश किया है। अनावृत नारी शरीर इन चित्रकारों के लिये, कोई गोपनीय विषय नहीं रहा, जिसे अध्ययन के लिये उन्हें व्यावसायिक मॉडल बैठाने पड़े हो।
उन्होंने तो इन्हें खुले रूप में ही देखा और सोचा और खुले रूप में ही इन्हें चित्रित किया था। नारी के शारीरिक अंग-उपांगों में उरोज और नितम्बों का आकार शारीरिक अनुपात से बढ़ा कर चित्रण करने पिछे कलाकार का भाव सृष्टी निर्माण में नारी को उर्वरा शक्ति रूप के साथ-साथ काव्य के शृंगार पक्ष को अभिव्यक्त करने का रहा है
जो अजन्ता (Ajanta caves) की चरम उपलब्धि है। विभिन्न घटनाओं के अंकन में कुछ विशिष्ठ आकृतियाँ बड़े आकर में चित्रित की गयी है, तथा उनकी विशेषताओं को भी, अजन्ता (Ajanta caves) के कलाकारों ने बड़ी उत्कृष्ठता से उभारा है।
जातक कथाओं के चित्रण में कहानी के विभिन्न चरणों को क्रमशः एक ही दीवार पर लगातर अंकित किया है। इन्हें विभाजन रेखा से विभक्त न करके कथानक के आगे कथानक का चित्रण कर एक दूसरे से संपूर्ण कथानक का संबंध दर्शाया है।
अजन्ता (Ajanta caves) के अंकन में अनेक प्रकार के भाव तथा अनेकानेक रस का दिग्दर्शन होता है। इस अर्थ के लिए बाण भट्ट ने ” त्रिभुवन संपुंजन’ शब्द का प्रयोग ‘ त्रिभुवन किया संपुंजन है।
जहाँ तीनों भुवनों के दिग्दर्शन हो जाते हो त्रिभुवन संपुंजन अजन्ता (Ajanta caves) संस्कृत के लिए कवि बहुत बाणभट्ट ही सार्थक का शब्द शब्द त्रिभुवन है। सत्य संपुजन है कि अजन्ता (Ajanta caves)’ शब्द में तीनों लोकों की वस्तुओं का चित्रण हुआ है। विषय वैविध्य की यहाँ खूब भरमार है।
देवीसृष्टि, देवता, इन्द्रादिक, अप्सरा-सुर-असुर, मानव, यक्ष, नाग, किन्नर, पृथ्वी, स्वर्ग, सूर्यचन्द्र, वन-पर्वत, सागर-सरिता, वृक्ष-लता, पुष्प-पत्र-फल, पशु-पक्षी, जलचर, नभचर, मानवीय-अतिमानवीय आदि समी तरह की आकृतियों का यर्थाथसाम्य का कल्पना के संस्पर्श के साथ अजन्ता (Ajanta caves) में चित्रण हुआ है।
इसी तरह बाल, युवा, वृद्ध, स्त्री-पुरुष, योगी-भोगी, रोगी-स्वस्थ, राजा-मन्त्री-सेवक, ब्राह्मण-व्याध, सैनिक-दूत, विदुषक-विद्वान, रानी, राजकुमारी, नर्तकी-प्रेयसी, दासी-प्रणयिनी, विरहिणी-प्रसविनी सभी का अजन्ता (Ajanta caves) में चित्रण किया गया है।
भाव में राग-द्वेश, कोध-हर्ष, शोक-उत्साह, भय, करुणा, वैराग्य तथा राजमहल, वन, वाटिका, जलाशय आदि सभी इन कलाकारों ने चित्रित किये हैं। जुलूस हाथी-घोड़ें सभी यहाँ चित्रित हैं।
जीवन के विविध पक्षों का विश्वकोश रुप में इतना बड़ा महाकाव्य वह भी स्वाभाविकता से चित्रित करना निसंदेह अन्यत्र दुर्लभ है। जीवन के सभी पक्षों को समानरुप से और लौकिक-अलौकिक भाव को इतने माधुर्य से चित्रित किया है कि अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों में भौतिक और आध्यात्म का एकाकीरण हो गया है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि, अजन्ता (Ajanta caves) के चित्र धर्म विशेष तक ही सीमित नहीं रहे हैं, बल्कि विभिन्न समुदायों की कला के रुप में व्यापक रुप धारण कर चुके हैं। विषय धार्मिक होते हुए भी सांसारिक रोचकता इन चित्रों में है।
वैसे तो अजन्ता (Ajanta caves) के चित्रों में संयोजन की विविधता है। फिर भी संयोजन केन्द्र आधारित है। मुख्य विषय और मुख्य आकृति की ओर दर्शक की दृष्टि स्वतः ही चली जाती है।
संयोजन की सभी आकृतियों केन्द्र प्रयोजनार्थ हैं सभी का उद्देश्य केन्द्र को पुष्ट करने का रहा है। जिससे चित्र और चित्र की विषयवस्तु सबल बन गये है।
मुख्य आकृति को प्रधानता देने के लिए इसे अन्य आकृतियों से बड़ी व मध्य भाग में बनाकर प्रभुत्व का प्रतिपादन किया है। कई बोधिसत्व के चित्रों की पृष्ठ भूमि में नाना चर-अचर जीव-जन्तु चित्रित किये है, जिससे संसार की नश्वरता का बोध कराया गया है।
अजन्ता (Ajanta caves) में सयोजन सौष्ठव की अपेक्षा घटना की वर्णनात्मकता पर अधिक बल दिया है, वहाँ संयोजन सौष्ठव तो स्वत ही आ गया है। मुकुट, आभूषण, वस्त्र व केश विन्यास अजन्ता (Ajanta caves) में मुकुटों, आभूषणों, वस्त्रों व केश को भी बड़ी विविधता और सुन्दरता से अंकित किया गया है।
देवताओं तथा महापुरुषों के मुकुट शिखर के समान ऊँचे और भव्य बनाये है। उदाहरणार्थ ” पद्मपाणिअवलोकितेश्रवर” का मुकुट भव्यता लिए हुए है। नागराज के मुकुट के पीछे पाँच फन का नाग लगा है।
इसी प्रकार “ गृहत्याग” व “ बजपाणि’ नामक चित्रों में मुकुट की बनावट तथा आकार से व्यक्ति का पद व उसके चरित्र के महत्व का आभास होता है। राजा और रानी के मुकुट में भी अन्तर दर्शाया है।
अजन्ता (Ajanta caves) के चित्राकारों ने पात्रों की शोभा बढ़ाने के लिए इन्हें रत्नों जड़ित मोतियों की लम्बी-लम्बी मालाएँ और गले को बड़े-बड़े मोतियों की मालाओं से युक्त चित्रित किया है।
मुकुटों से माथे तक लटकती छोटे-छोटे मोतियों की मालाएँ तथा गर्दन से वक्षस्थल पर लहराती हुई ये मालाएँ तत्कालीन राजसी अंलकरण को दर्शाती प्रतीत होती हैं। अन्य आभूषणों में मीनाकार कुण्डल पत्र व मटकाकार कुण्डल, भुजाओं में व कमर में मोतियों की करधनियाँ बनायी है।
हाथों में कड़े बाजूबन्ध व मणिबन्धों से स्त्रियों के कोमल हाथों को और भी सुन्दर बना दिये है। वस्त्रों के स्वाभाविक फहरान, इन चित्रों में सुन्दरता से है। पुरुष मानव अधिकांशतः आकृतियों के अधोभाग वस्त्रों में की धोती सिकुड़न पहने व व ऊपरी फहरान शरीर स्वाभाविक में कुर्ता पहने दर्शाये हैं।
स्त्रियाँ कोहनी तक की आस्तिन की चोली नीचे के भाग में धोती या आँचल पहने हैं। नर्तकिया विशेष प्रकार का चुस्त कुर्ता और तंग पायजामा पहने है। चित्रकारों ने इनके वस्त्रों को भी नाना आलेखनों से अंलकृत किया गया है।
यद्यपि अजन्ता (Ajanta caves) के चित्र बहुत प्रचीन हैं, फिर भी वर्तमान में स्त्रियाँ अजन्ता (Ajanta caves) में चित्रित केश-विन्यास से प्रेरणा लेती है। स्त्रियों के लम्बे लहराते बेणियों में बंधे बाल, कंधों पर लटकते.
गोलाकार (धुंघराले) बाल, माथे पर लटकते, चिकुर जूड़ों में बच्चे बाल, गुथे हुए बाल, खुले एवं छिटके हुये कुन्तल केश आदि अनेक प्रकार के केश-विन्यास का मोहक रूप यहाँ देखने को मिलता है।
हस्तमुद्राएँ एवं भावभंगिमाएँ –
अजंता के चित्रों में विभिन्न हस्त मुद्राओं वाह भाव भंगिमाओं की अद्भुत छटा देखने को मिलती है इन्हीं दो बातों से चित्रकारों ने अपने पात्रों को जीवंत कर दिया अजंता की मुद्राएं भाव की पूर्ण अभिव्यक्ति करती है ।
अजंता की आकृतियों का शैली करण इन्हीं मुद्राओं व भाव भंगिमाओं से हुआ है आकृतियों की बनावट भावभय नेत्र वाचाल भौहे पुस्ट अधर आस्था हस्त मुद्राओं आदि के माध्यम से स्नेह विषाद वात्सल्य क्रोध आदि भाव कलाकारों ने अजंता में सहज ही प्रदर्शित किए गए हैं ।
लचकदार अंगुलियों की मुद्राएं भारतीय शास्त्रीय नृत्य में प्रयुक्त मुद्राओं के समरूप है यहां कलाकारों ने समलीन प्रचलित नृत्य कला की हस्त मुद्राओं का प्रयोग किया है इन मुद्राओं ने आकृति की भव्यता और भाव अभिव्यक्ति में अपूर्व शक्ति दी है ।
भाव अभिव्यक्ति में अजंता के चित्रों का विशेष महत्व है चित्रकार ने यहां के चित्रों में ६न्द२ीति का परिचय देते हुए नारी को सुकोमल लतिका के समान लावण्यमय भंगीमाओं में चित्रित किया है जो चित्ताकर्षक के साथ-साथ नारी को अदित्य सम्मान भी देती है ।
यह गुफा संख्या दो में चित्रित विमाता महा प्रजापति की भंगिमा दर्शनीय है जिसमें वह एक कोमल लतिका के समान स्तंभ के सहारे अपना बायाँ पैर मोड़े खड़ी है इसी प्रकार पद्मापानी अवलोकितेश्वर ,मरणासन्न राजकुमारी, झूला झूलती युवती , श्रंगार रत राजकुमारी, के चित्र भाव भंगिमाओ के उत्तम उदाहरण है ।
आकृतियों के विभिन्न भाव भंगिमाएँ प्रदर्शित करते समय चित्रकार ने शारीरिक स्थितिजन्यलघुता का पूरा ध्यान रखा है यही कारण है कि सभी आकृतियां मुख मंडल से ही स्वभाव की उग्रता, सौम्यता, चंचलता, विनोद, आदि का ज्ञान करा देती है ।
भय, श्रंगार, हर्ष, शांति, आदि भाव को अजंता के चित्रकारों ने सहज ही इस चित्रों में दर्शा दिया है ।