शाहजहां जीवन परिचय

शाहजहां जीवन परिचय((1628-1658 ई.) -शाहजहाँ को जहांगीर की मृत्यू के बाद मुगल साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया गया। उसके समय तक आते-आते कला का स्वरूप पूरी तरह बदल गया, चित्रकला का स्थान अब वास्तुकला ने ले लिया था।
सम्राट की रूचि स्थापत्य कला में थी, फिर भी जहाँगीर के द्वारा किये प्रयासों में उसने फेर बदल नहीं किया। दरबार में चित्रकारों को आश्रय मिलता रहा लेकिन स्वाभाविक निरूपण के स्थान पर अलंकरण, सूक्ष्म रेखांकन, साज-सज्जा एवं वैभव का प्रदर्शन अधिक होने लगा।
हांशियों कों फूलों, पत्तियो चित्र संख्या- 1.5 वृद्धा अवस्था में शाहजहाँ व लताओं से सुशोभित किया जाने लगा। भावों की उदासीनता है हालाकि रंगों के प्रयोग में व लिखाई मे सफाई दिखाई देती है परंतु उनकी संख्या बहुत कम है।
शाहजहाँ पहले के शासकों की तरह प्रकृति प्रेमी नहीं था। यही वजह है की इस समय प्राकृतिक अंकन व पशु-पक्षी चित्रण न के बराबर हुए। इसकी बजाय दरबारी शानो शौकत अधिक देखने को मिलती है चित्रांकन में हद दर्जे की बारिकी और विस्तार दिखाई देने लगे। भावों को गौण कर दिया गया जिससे उबाऊपन आने लगा।
रोमांस व शांत वातावरण के अंकन होने लगे। युद्ध दृश्य विलुप्त हो गये। चित्रकारों ने लैला-मजनु, खुसरो-शीरी, कामरू-कामलता एवं रूपमती-बाजबहादुर के रोमांस के चित्र बनाये गये। व्यक्ति चित्रों के प्रति भी उसका अधिक लगाव था ।।। स्वयं स्वयं का का व्यक्तिचित्र व्यक्तिचित्र बहुत आलंकारिक ढंग से बनवाता था।
प्रारंभिक काल में दो सचित्र पोथियां तैयार की गई थी ‘ गुलिस्ताँ’ और ‘ पादशाहनामा’। पादशाहनामा में शाहजहाँ का इतिहास वर्णित है। इसके मुख्य कलाकार बालचंद, लालचंद, रामदास, मुरार, बिचित्तर, भोला, आबिद, प्रयाग, मीर दस्त, बिशनदास, बुलाकी, तेजदस्त, ढोला तथा दौलत थे।
इसका चित्रांकन पूर्णत: भारतीय है। उसके द्वारा किये वास्तु के कार्यों में ‘ ताजमहल’ को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। ये आज भी कला का श्रेष्ठतम नमूना है व विश्व के सात आश्चर्यों में शामिल है। यह मकबरा शाहजहाँ ने पत्नी मुमताज़ के लिए बनवाया था। इसके अलावा जामा मस्जिद, लाल किला आदि प्रसिद्ध किले भी शाहजहां के ही काल में बने हैं।
‘ शाहजहाँनामा’ में यह उल्लेख मिलता है की उस समय चित्रण के नये आदर्श स्थापित हो गए थे। शानोशौकत, चमक-दमक, शाही अदब – कायदे, यवन सुंदरियों, राजसी वैभव व सम्राट कीसाधु-संतों से मेंट का विशेष रूप से चित्रण होने लगा। सौंदर्य की अभिव्यक्ति के लिए सूक्ष्म रेखाओं से अंकन किया जाता था।
बहुत से ऐसे चित्र हैं जिनमें मात्र रेखाओं से ही चित्रण हुआ है, जिन्हें ‘ स्याह कलम’ कहा जाता है। चमकीले रंगों का स्थान अब कोमल रंगों ने ले लिया। शाहजहाँ का काल, चित्रण कला के इतिहास में सजीवता एवं स्वाभाविकता से प्रायःप्रत्यावर्तन है। सौंदर्यानुभूति के मापदण्ड में परिवर्तन के कारण मुगल चित्र शैली गतिहीन हो गई।
‘ शाहजहाँ के साथ मुगल शैली की भव्यता का अंत हो गया। शाहजहाँ को अंतिम दिनों में काफी कष्ट भोगना पड़ा। वह 1657 ई. में बहुत बीमार पड़ गया था, ऐसे में उसके पुत्रों में आपसी संघर्ष होने लगा। शहजादे औरंगजेब ने सिंहासनारूढ़ होने के लिए सभी भाईयों का वध कर दिया। यहां तक की अपने पिता शाहजहाँ को भी किले के भीतर बंधक लिया, जहां 1666 में वह मृत्यु को प्राप्त हुआ।