महाराणा प्रताप की जीवनी – Biography Maharana Pratap

महाराणा-प्रताप-Maharana-Pratap

महाराणा प्रताप की जीवन कथा –

जन्म 9 मई 1540
जन्म स्थान – कुंभलगढ़ में स्थित कटार गढ़ के बादल महल में
राज्याभिषेक – 32 वर्ष की आयु में 28 फरवरी 1572 को गोगुंदा में
दूसरा राज्याभिषेक – कुंभलगढ़ में
वंश – सिसोदिया (गूहिल)

महाराणा प्रताप के पिता का क्या नाम था

राणा उदय सिंह

महाराणा प्रताप की माता नाम क्या था

माता – जैवन्ता बाई (पाली के अखेराज सोनगरा की पुत्री)

पत्नी -अजवादे पवार (अमर सिंह की मां)
प्रिय घोड़ा – चेतक (समाधि – वालेचा गांव उदयपुर)

महाराणा प्रताप के उपनाम –

(1) राणा कीका
( 2) नलिया कली
( 3) गजकेसरी
( 4) पाथल (सूर्य)
( 5) नीला घोड़ा रा असवार

प्रताप की मृत्यु – 57 वर्ष की आयु में 19 जनवरी 1597  को चावंड में (उदयपुर)
प्रताप की छतरी – बाडोली ( उदयपुर)

जेम्स टॉड के अनुसार – राणा प्रताप की मृत्यु उदयपुर में हुई थी जेम्स टॉड ने महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को गजकेसरी और अबुल फजल ने नलिया कली कहां है ।

महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को बचपन में पहाड़ी क्षेत्रों में राणा किका कहां जाता था जो छोटे बच्चों का संबोधन सूचक शब्द हैं ।

महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की पर्वतीय और जंगलों की अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों के कारण प्रताप ने मुगलों से संघर्ष करने का निर्णय लिया था ।

राणा उदय सिंह ने अपनी एक पत्नी भटियानी रानी – धीरबाई के प्रभाव मैं आकर अपने छोटे पुत्र जगमाल को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया था परंतु ग्वालियर के राजा राम सिंह और प्रताप के मामा मानसिंह सोनगरा द्वारा दबाव डाले जाने पर पुनः प्रताप को ही उत्तराधिकारी बनाया गया ।

उदयसिंह की मृत्यु के बाद जगमाल अकबर की सेवा में चला गया था अकबर ने जगमाल को जहाजपुर की जागीर और सिरोही का कुछ क्षेत्र दिया था ।

जगमाल 1583 में दत्तानी के युद्ध में सिरोही के शासक सुल्तान देवड़ा से लड़ते हुए मारा गया राणा प्रताप का एक भाई शक्ति सिंह भी अपने पिता के जीवनकाल में ही अकबर की सेवा में चला गया था ।

शक्ति सिंह ने राणा प्रताप को मुगल सेना द्वारा मेवाड़ पर किए गए आक्रमण की सूचना दी थी ।

अकबर ने राणा प्रताप को अपनी अधीनता में लाने के लिये उदयपुर में निम्न चार प्रस्ताव भेजे थे ।

प्रस्ताव नेतृत्व  करतावर्ष
(1).जलाल खा1572
(2). मानसिंह1573
(3). भगवान दास 1573
(4). टोडरमल 1573

महाराणा प्रताप की जीवनी

हल्दीघाटी का युद्ध कब हुआ ?

हल्दीघाटी का युद्ध (राजसमंद 18 जून 1576)-इतिहासकार आशीर्वाद लाल श्रीवास्तव के अनुसार हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को और गोपीनाथ शर्मा के अनुसार 21 जून 1576 को लड़ा गया था।  जिनमें 18 जून की तिथि प्रमाणित मानी जाती हैं ।

गोपीनाथ शर्मा ने इस युद्ध को अनिर्णीत युद्ध बताया है युद्ध की रणनीति अजमेर के मैगजीन फोर्ट में बनाई गई थी इस युद्ध  में मानसिंह ने मांडलगढ़ से और प्रताप ने कुंभलगढ़ से आक्रमण किया था ।

जेम्स टॉड ने इस युद्ध को सर्वप्रथम हल्दीघाटी का युद्ध नामक देकर इसे मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहां था ।

इस युद्ध में मानसिंह मर्दाना नामक हाथी पर लड़ने आया था जबकि उसकी सेना में गजमुक्ता और गजराज नामक चर्चित हाथी भी शामिल थे ।

इस युद्ध में मानसिंह की ओर से इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायूनी ने भी भाग लिया था जिसमें अपने ग्रंथ मुन्तखां उल तवारीख मैं आंखों देखा हाल लिखा है
बदायूनी ने युद्ध को गोगुंदा का युद्ध कहां है जबकि अबुल फजल ने इसे खमनोर का युद्ध कहां है ।

इस युद्ध में मानसिंह की ओर से लड़ने वाले 1 सैनिक मिहतर खां ने अकबर के आने की अफवाह फैलाई थी ।

आसफ खां ने हल्दीघाटी के युद्ध को जिहाद धर्म युद्ध घोषित किया था यह युद्ध जहां पर लड़ा गया था वहां अत्यधिक खून खराबा हुआ था इस कारण बदायूनी ने इस स्थान को रक्त तलाई कहां है ।

इस युद्ध में राणा प्रताप चेतक पर लड़ने आए थे प्रताप ने मुगलों की हाथियों की शाही सेना को चीरने के लिए चेतक के आगे हाथी की नकली सूंड लगाई थी इस युद्ध में राणा प्रताप की सेना में लूना और रामप्रसाद जैसे चर्चित हाथी भी शामिल थे ।

रामप्रसाद को मुगल सेना द्वारा पकड़ लिया गया और अकबर ने उसका नाम बदलकर पीर प्रसाद कर दिया था इस युद्ध में महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की और से निम्न सेनापतियों ने भाग लिया था ।

अमर सिंह, भामाशाह, ताराचंद, राम सिंह, मानसिंह , सोनगरा, मान सिंह झाला, हकीम खां सूर, पुंजा भील (भीलू राणा) इस युद्ध में प्रताप की सेना के हरावल दस्ते का नेतृत्व हकीम खां सूर ने किया था जो प्रताप के मुख्य सेनापति और प्रताप की और से लड़ने वाले एकमात्र मुसलमान थे ।

इस युद्ध में प्रताप की सेना के चंद्रावल दस्ते का नेतृत्व पुंजा भील ने किया था
यह युद्ध आरंभ होते ही प्रताप के चेतक की टांग कट गई थी इस कारण  प्रताप युद्ध छोड़ कर चले गए उनके जाने के बाद झाला मानसिंह /मन्ना /बीदा ने प्रताप के राज चिन्ह धारण कर युद्ध का नेतृत्व भी किया था ।

चेतक ने तीन टांगों पर चलकर प्रताप को बचाकर स्वामी भक्ति दिखाई थी  परंतु बनास नदी का नाला पार करते समय चेतक की मृत्यु हो गई हल्दीघाटी के युद्ध के बाद प्रताप ने अपनी सेना का इलाज कोल्यारी (उदयपुर) नामक स्थान पर करवाया था मानसिंह ने वापस लौटते समय गोगुंदा पर अधिकार कर लिया था परंतु प्रताप ने गोगुंदा पर पुनः अधिकार कर लिया ।

हल्दीघाटी के युद्ध के बाद अकबर ने नंबर 1576 में उदयपुर पर आक्रमण कर उसे जीत लिया और उदयपुर का नाम बदल कर मुहमदाबाद कर दिया अकबर ने फखरुद्दीन और जगन्नाथ कछवाहा को उदयपुर का प्रबंधक नियुक्त किया था ।

अकबर के सेनापति के रूप में शाहबाज खां ने 1577- 78- 79 मैं मेवाड़ पर तीन बार आक्रमण किए थे जिसमें शाहबाज खां ने 1578 मैं कुशलगढ़ पर अधिकार कर लिया ।

कुंभलगढ़ को खोने के बाद राणा प्रताप ने जंगलों में रहकर मुगलों से संघर्ष किया और आवरगढ को अपने संघर्ष का केंद्र बनाया जिसे प्रताप की अस्थाई राजधानी भी कहते हैं ।

संकट के इस समय में राणा प्रताप को भामाशाह ने 20,000 स्वर्ण मुद्राएं और 25 लाख की आर्थिक सहायता दी थी भामाशाह और राणा प्रताप की मुलाकात  चुलिया नामक स्थान पर हुई थी ।

भामाशाह पाली के निवासी थे और प्रताप के वित्त मंत्री थे प्रताप को आर्थिक सहायता देने के कारण जेम्स टॉड ने भामाशाह को मेवाड़ का कर्ण कहां है
भामाशाह को मेवाड़ का रक्षक और मेवाड़ का उद्धारक भी कहा जाता है राणा प्रताप को 1580 मैं कुंभलगढ़ को मेवाड़ की नई राजधानी बनाई ।

प्रताप को पराजित करने के लिए अकबर के सेनापति के रूप में अब्दुल रहीम खान खाना ने 1580-81 में मेवाड़ पर आक्रमण किया था परंतु इसी समय अमर सिंह ने खैरपुर नामक स्थान पर खानखाना के परिवार को बंदी बना लिया था जिसे प्रताप के कहने पर छोड़ दिया गया ।

अकबर ने मेवाड़ पर नियंत्रण रखने के लिए मेवाड़ में निम्न चार सैनिक चौकीयां स्थापित की थी जिनका मुख्यालय दिवेर था ।

( 1) दिवेर (राजसमंद)

( 2) देसूरी (पाली)

( 3) देवल (डूंगरपुर)

(4) देवाली (उदयपुर)

दिवेरी का युद्ध कब हुआ ?

दिवेरी का युद्ध अक्टूबर 1583 – महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) , अमर सिंह, भामाशाह V/S अकबर का सेनापति सुल्तान खां विजेता – महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) इस युद्ध में सुल्तान खां अमर सिंह के हाथों मारा गया इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने छापामार (गोरिल्ला युद्ध पद्धति) अपनाई जेम्स टॉड ने दिवेर के युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहां है

अकबर ने महाराणा प्रताप को पराजित करने के लिए अंतिम और सातवां सैनिक अभियान जगन्नाथ कछवाहा के नेतृत्व में 1584-85 मैं भेजा था जो असफल रहा ।

महाराणा प्रताप ने 1585 लुणा चामंडिया को पराजित कर चावंड पर अधिकार कर लिया और उसे मेवाड़ की राजधानी बनाया चावंड 1585 से 1615 के मध्य लगभग 30 वर्षों मेवाड़ की राजधानी रही जिसमें चावंड लगभग 12 वर्षों तक प्रताप की राजधानी रही ।

महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध के बाद कुंभलगढ़ को और दिवेरी के युद्ध के बाद चावंड को अपनी राजधानी बनाया कुंभलगढ़ को मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी जबकि चावंड को प्रताप की संकटकालीन राजधानी कहते हैं ।

अकबर ने प्रताप को पराजित करने के लिए मेवाड़ पर 7 बार आक्रमण किए थे ।

  वर्षनेतृत्व
( 1) 1576मानसिंह
( 2) 1576अकबर
( 3) 1577 – 78 – 79शाहबाज खा
( 4)  1580अब्दुल रहीम खानखाना
( 5)   1584 – 85  जगन्नाथ कछवाहा

राणा प्रताप ने जीवन के अंतिम दिन चावंड में बिताए थे

महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई थी ?

चावंड में ही 19 जनवरी 1579 को प्रताप की मृत्यु हो गई थी प्रताप की छतरी चावंड से 2.5 मील बाण्डोली में बनी हुई है जो 8 खंभो की छतरी है ।

राणा प्रताप ने चित्तौड़गढ़ और मांडलगढ़ को छोड़कर संपूर्ण मेवाड़ पर पुनः अधिकार कर लिया था महाराणा प्रताप ने चावंड में चावंड माता मंदिर और बदराणा के हरिहर मंदिर का निर्माण करवाया था ।

राणा प्रताप ने समकालीन विद्वान माला सांडू ने महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का झूलना नामक ग्रंथ लिखा था ।

महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के दरबारी पंडित चक्रपाणि  मिश्र ने निम्न ग्रंथ लिखे ।

( 1) मुहूर्त माला (2) राज्य अभिषेक पद्धति (3 ) विश्व वल्लभ

महाराणा प्रताप के पुत्र का नाम क्या था ?

प्रताप के बाद उनके पुत्र राणा अमर सिंह मेवाड़ के शासक बने थे जिन्होंने 5 फरवरी 1615 को जहाँगीर से चित्तौड़ की संधि करके मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली ।

महाराणा प्रताप की कितनी पत्नियां थी ?

महाराणा प्रताप के 14 पत्नियां थी तथा 17 पुत्र व 5 पुत्रियां  थी ।

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