बाबर के काल में मुगल चित्रकला- Mughal painting during Babur’s era

बाबर के काल में मुगल चित्रकला(Mughal painting during Babur’s era)-बाबर (1526-1530 ई.) मुगल सल्तनत का प्रथम सम्राट तथा संस्थापक था। उसका जन्म 14 फरवरी 1483 ई. को तुर्क वंश में हुआ। बाबर का पूरा नाम ‘ जहिर-उद्दीन मोहम्मद’ था।
मंगोल व तुर्क माता-पिता की संतान होने के कारण उसमें दोनों रक्त प्रवाहित थे। वह साहित्य, कला एवं काव्य का चितेरा था। उसने भारत में आक्रमण करके मुगल साम्राज्य की नींव डाली और कला की नवीन प्रवृति का शुभारंभ भी किया। उसके द्वारा कलाकार और कवियों को संरक्षण मिलता रहा। बाबर के दरबार में ‘ बिहजाद’ एक प्रसिद्ध चित्रकार था।
बाबर उसे सबसे अधिक पसंद करता था, उसके चित्रण कार्यों पर अनेक बार टिप्पणी की है। सम्राट ने कहा कि ” वह कुशल कलाकार है लेकिन बिना दाढ़ी वाले युवा का निरूपण ठीक रूप से नहीं कर पाया”। चित्रकारों को दिए संरक्षण तथा पुस्तकों में सजीवतापूर्ण शब्द चित्रण से उसके कला पारखी होने का पता चलता है।
एक अन्य टिप्पणी में बाबर ने समरकंद की चित्र में सम्राट बाबर एक मस्ज़िद के लिए कहा की वह चीनी चित्रों द्वारा सजी में हुई थी। इसके अलावा बाबर ने ‘ शाह मुजफ्फर’ नाम के चित्रकार के लिए लिखा है की वह चित्रों में सादृश्यता दर्शाने में दक्ष था एवं उसके चित्र बहुत सुंदर हुआ करते थे। बाबर न सिर्फ एक सिद्धस्त कवि था बल्कि साथ-साथ गद्य लेखक भी हुआ करता था।
‘ तुजुक-ए-बाबरी’, ‘ बाबरनामा’ उसके द्वारा लिखी बडी महत्वपूर्ण पुस्तकें है। बाबर के असामान्य व्यक्तित्व और सर्वांगीण जीवन शैली का परिचय इन्हीं कृतियों से प्राप्त होता है। ये पुस्तकें तुर्की भाषा में लिखित हैं। इसमें पुष्पों, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों आदि का वर्णन उसका प्रकृति के प्रति प्रेम व सौंदर्यानुभूति दर्शाता है।
जिन पुस्तकों को बाबर भारत में अपने साथ लाया था उसमें सचित्र ‘ शाहनामा’ भी थी। बाबर का चार वर्षीय राज्यकाल इतना अधिक व्यस्त रहा की चित्रकला के क्षेत्र में चाह कर भी योगदान न दे सका।
इसके बावजूद हम यह कह सकते हैं की उसने भारत में विराट कलात्मक प्रथा की नींव रखी। उसके आत्मचरित से कला के लिए समर्पण और आकर्षण का ज्ञान होता है। यदि उसे अधिक समय मिल पाता तो वह भी चित्रकला के क्षेत्र में कुछ कर पाता, परंतु वह अपनी इस विरासत को पुत्र हुमायूं को सौंप कर दिवंगत हो गया।