अकबर के काल में मुगल चित्रकला-Mughal painting during Akbar’s time

अकबर के काल में मुगल चित्रकला-Mughal painting during Akbar’s time

अकबर के काल में मुगल चित्रकला

अकबर के काल में मुगल चित्रकला-Mughal painting during Akbar’s time-अकबर (1556-1605 ई.) का जन्म15अक्टूबर 1542 ई. को हुआ। वह’ हमीदा बानू बेगम ‘के गर्भ से अमरकोट के राणा’ वीरसाल ‘ के महल में पैदा हुआ। अकबर को हुमायूं की आकस्मिक मृत्यु हो जाने के कारण मात्र 13 वर्ष की उम्र में ही सिंहासनारूढ़ होना पड़ा था। अकबर बचपन में ‘ बदरूद्दीन ‘ नाम से जाना जाता था।  पिता हुमायूँ ने’ जलालुद्द मुहम्मद अकबर ‘ नाम रख दिया था। भारत के इतिहास में अकबर का नाम सर्वप्रसिद्ध रहा है। उसने संपूर्ण भारत को एक साम्राज्य के अन्तर्गत लाने का प्रयास किया था। पिता से प्राप्त विरासत को अकबर ने और अधिक आगे बढ़ाया। उसके समय जन्मी कलम को शाही मुगल कलम भी कहते हैं। अकबर का शासन काल कला के विकास के लिए वरदान सिद्ध हुआ।’ ख्वाजा अब्दुस्समद शीराजी ‘ तथा’ मीर सैय्यद अली ‘ अकबर के दरबार में भी कार्यरत थे। इस के अलावा अनेक हिन्दू व मुस्लिम चित्रकार दरबार में चित्रण कार्य करते थे।’ अबुलफजल ‘ की’ आईन-ए- अकबरी ‘ में लिखा है की बचपन से ही अकबर को चित्रकला का शौक था। वह दरबार में कलाकारों को आश्रय और सम्मान देता था। देश में ही नहीं विदेश में भी अकबर की ख्याति रही एवं कई विदेशी कलाकार भी बादशाह की सेवा में कार्यरत थे।

अकबर को कम उम्र से ही कई युद्ध करने पडे। वह पढ़ लिख नहीं सकता था तब भी उसके काल में इतिहास के अनेक अध्याय लिखे गये। उसने ‘ दीन-ए-इलाही’ धर्म की नीति की स्थापना की जिसके तहत मुस्लिम धर्म की कट्टरता को न अपना कर कला की उन्नति के लिए प्रयास किये क्योंकि चित्रकला मुस्लिम धर्म में निषेध थी। उसने हिन्दू धर्म के ग्रंथों का फारसी अनुवाद करवाया जिससे सभी उन्हें पढ़ सके। साथ ही उन विषयों पर चित्रात्मक पांडुलिपियाँ भी तैयार करवाई। अकबर स्वयं कलाकारों के कार्य में रूचि रखा करता था। वह उनके काम का लेखा जोखा रखता था। सम्राट के आदेश पर चित्रकार हर सप्ताह अपने-अपने कार्यों को दरबार में पेश करते थे, फिर सम्राट कार्य की कुशलता के अनुरूप ही कलाकारों को इनाम भेंट करते या मासिक वेतन बढ़ा देते थे। अकबर खास चित्रकारों को ‘ नादिर-उल-मुल्क’, ‘ हुमायूं नसारी’ जैसी विभिन्न उपाधियों से भी सम्मानित किया करता था। इस प्रकार की नीति अपनाने से कला में दिन-प्रतिदिन उन्नति होने लगी। कलाकारों को इससे बहुत अधिक प्रोत्साहन मिला। अकबर का मानना था की भारतीय चित्रकार व चित्र सर्वश्रेष्ठ है तथा बहुत कम कलाकार इनके समकक्ष है ऐसे लोग जो चित्रकला से घृणा करते थे उन्हें वह पसंद नहीं करता था और उनका विरोध करता था। अबुल फजल ने एक अभिलेख में कहा है की अकबर एक कहार के बेटे दसवंत के काम से इतना प्रभावित था की उसने उसे ” अपने समय का पहला अग्रणी कलाकार” बनने में सहयोग प्रदान किया था। उसके चित्रों की तुलना बिहजाद की कलाकृतियों से की जाती थी। दसवंत के चित्र रज्मनामा की पांडुलिपि में मिले हैं जो मुगल चित्रकला में मील का पत्थर माने जाते है। दसवंत के साथ बसावन, तुलसी, लाल व मिसकिन ने भी एक से एक सुंदर रचनाएं
की जिससे अकबर कालीन चित्रकला के गौरव में वृद्धि हुई। रज्मनामा के बाद रामायण, तारीखे-खानदान-तैमूरिया, अकबरनामा आदि अनेक पांडुलिपियाँ तैयार हुई। ये पांडुलिपियाँ मुगल चित्रणशाला के उत्कृष्ट उदाहरण है। इनमें फारसी, इस्लामी, युरोपीय व भारतीय कला
तत्वों का मिश्रण विद्यमान है। रेखाएँ सूक्ष्म, जीवंत भावाभिव्यक्ति, वास्तविक दृश्य चित्रण एवं सुग्रंथित रेखाएँ इन पांडुलिपियों की विशेषता है। इस काल के चित्रों में नूतनता, रेखाओं में स्पष्टता, तकनिकी दृढ़ता आदि अपूर्व गुण देखे जा सकते हैं। इसी कारण निर्जीव वस्तुओं के निरूपण में भी जीवनतता दिखाई दी। डॉ.स्टेला क्रेमरिश के अनुसार अकबर यर्थाथवादी व्यक्ति था। चित्रण कार्य में भी उसने
वास्तविकता पर ही अधिक जोर दिया था। चित्रशाला के कार्यरत उस्ताद तो फारसी थे किंतु उनके अधीन कार्य करने वाले चित्रकार भारतीय ही थे। यही कारण है की हम्जानामा में फारसी और भारतीय दोनों प्रकार की विशेषताएं पायी गई है ” अबुल फज़ल ने सम्राट अकबर
के संरक्षण में कला की उन्नति पर टिप्पणी करते उल्लेख किया है कि मुगल चित्रकारों के उत्तम कार्य की तुलना यूरोप के ख्याति प्राप्त चित्रकारों के अद्भुत चित्रों से की जा सकती
है। “मुगल शैली प्रारंभ में विदेशी थी परंतु धीरे-धीरे उसमें भारतीय तत्व आ गये। संपूर्ण भारत से अनेक कलाकार उसके दरबार में आये थे। चित्रण कार्य के लिए’ तस्वीरखाना ‘ विभाग खोला जिसमें चित्रकार, लिपिकार, लेखक, सजावटकर्ता, स्वर्ण कार्य करने वाले, कागज बनाने
वाले आदि मिलकर कार्य करते थे। अकबर के दरबार में 100 से भी अधिक चित्रकार थे जिनमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही हुआ करते थे। मुस्लिम चित्रकारों में ख्वाजा अब्दुस्समद शीराजी, मीर सैय्यद अली, कलमाक, मिस्किन आदि तथा हिन्दू चित्रकारों में दसवंत, बसावन, हरीवंश, राम, महेश आदि थे। अकबर के अंतिम वर्षों में सलीम अर्थात जहाँगीर के विद्रोह कर देने से राजनैतिक स्थिति अव्यवस्थित हो गई तथा साथ ही चित्रों की गुणवत्ता व गति में भी स्थिरता आ गई।
इस समय चित्रित बाबरनामा, ऐयारे-दालिश आदि पांडुलिपियों के लघुचित्रों में अलंकरण नहीं है और सादगीपूर्ण रचनाएँ है। इन चित्रों को अकबर के दरबार के सिद्धस्त कलाकारों द्वारा नहीं बल्कि सहायक चित्रकारों के द्वारा बनाया गया है। अकबर के शासन के इतिहास में हुए वैभवपूर्ण चित्रण शाही शिल्पकक्ष में किये गये। तात्कालीन पसंद किये जाने वाले विषयों में से छांट कर ही चित्रण हुआ करता था
काल में चित्रों को विषय की दृष्टि से निम्न भागों में बांटा जा सकता है:

1- अभारतीय कथाओं पर चित्र- हम्जानामा, तूतीनाम, खमसा निजामी(लैला मजनूं की प्रेम कथा) आदि।

2- भारतीय कथाओं पर चित्र- रामायण, रज्मनामा (महाभारत), नलदमन (नल-दमयंती),अनवार-ए-सुहैली (पंचतंत्र) आदि।

3- ऐतिहासिक चित्र- शाहनामा (ईरान के राजाओं का इतिहास), बाबर नामा (बाबर काइतिहास), जामीउत-तवारीख (मंगोलों का इतिहास), तारीखे अल्फी (दुनिया काइतिहास), अकबरनामा (अबुल फजल द्वारा लिखित इतिहास), तारीख-ए-खानदान-एतैमूरिया आदि।

4- व्यक्ति चित्र- समकालीन दरबारियों, अमीर उमरावों, राजदूतों व बेगमों के चित्र।

5- सामाजिक चित्र- सामाजिक जीवन की झांकी, प्याउ, पनघट, ऋषि मुनियों का जीवन,किसान-झौंपडी, विभिन्न उत्सव आदि का चित्रण।

अकबरकालीन प्रमुख ग्रंथों का संक्षिप्त वर्णन किया जा रहा है:

हम्जानामा-लघूचित्र के प्रचलित संग्रहों में प्रथम ‘ दास्तां-ए-अमीरहम्जा की महान पीरयोजना थी।ये इस्लाम परंपरा की सच्ची ऐतिहासिक प्रेम कथा थी। इसकी चित्रावली 1560-75 ई. के मध्य तैयार की गई थी। इस कार्य को पूरा करने में लगभग एक सौ कलाकार, सजावटकर्ता,लिपिकार, जिल्दसाज़ एकत्र हुए। इसके बाद भी पंद्रह वर्षों में यह कार्य संपन्न हुआ। इसमें तकरीब 1200 चित्र है, सूती वस्त्रों पर इसका निर्माण किया गया जिनका आकार लगभग 68″ X 32 ” से.मी. था। ये फोलियो पर चिपकाए हुए हैं। इसे चौदह खंडों में बनाने की योजना थी और हर खंड़ में सौ फोलियो बनाये गये थे। आज हमें मात्र 115 की जानकारी मिलती है। जिनमें से भी अधिकांश हिस्से युरोप व अमरीका के संग्रहों में है। इन चित्रों में फारसी तथा भारतीय कला का मिश्रण देखा जा सकता है। हम्जानामा के चित्रण हेतु भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों जैसे राजस्थान, ग्वालियर, कश्मीर, लाहौर आदि से कलाकार आये थे।” इसमें फारासी नायक अमीर हम्ज़ा (अर्थात हजरत मुहम्मद साहब के चाचा) की वीरता की रोचक कथाएं हैं। अब तक प्राप्त फोलियो में किसी भी कलाकार के हस्ताक्षर नहीं होने से इसके ऐतिहासिककालक्रम का निर्धारण करना कठिन हो गया है। कुछ का मत है कि यह काम हुमायूँ के समय से प्रारंभ हुआ था तो कुछ अकबर काल से ही शुरूआत मानते हैं। यह फारसी तथा भारतीय दोनों शैलियों में बनी है। दुर्भाग्यपूर्वक इस कृति के बहुत कम उदाहरण प्राप्त है शेष हिस्सेविदेशों के संग्रहालयों में रखे हैं। फारसी नायक अमीर हम्जा के वीरतापूर्ण कारनामों की पुस्तकों से अकबर को बेहद लगाव था इसलिए इस चित्रकथा को बहुत संभाल के रखता था

तूतीनामा-इस ग्रंथ के चित्र 1580-85 ई. के मध्य बनाये गये थे। इसमें तोते की प्रेम कहानी परलगभग 103 चित्र बनाये गये हैं। इन चित्रों की लंबाई 24.4 एवं चौड़ाई 16.3 से.मी. है। यह ईरान में प्रचलित एक कथा का रूपांतरण है इसमें बनाये गये चित्रों की विशेषता हम्ज़ानामा
के समान है। इसके मुख्य चित्रकार बसावन और इकबाल थे।

रज्मनामा-यह ग्रंथ ‘ अब्दुल कादिर बदायूँनी’ नामक विद्वान द्वारा लिखित था। इसके द्वारा ग्रंथ मेंमहाभारत का फारसी रूपांतरण किया गया है। इसके पूरा होने का समय 1581-82 ई. था। इस ग्रंथ की सचित्र प्रति 1588 ई. में तैयार हुई 169 चित्र बनवाये गये थे।अधिकांश दसवंत द्वारा निर्मित हैं। रज्मनामा के चित्रों में ईरानी प्रभाव की तुलना में भारतीय प्रभाव अधिक परिलक्षित हुआ है।

बाबरनामा-इस ग्रंथ का खानखाना ने तुर्की भाषा में अनुवाद किया था। इसमें की बाबर की 1519 ई. से 1529 ई. तक की आत्मकथा वर्णित है। बाबरनामा की अनेक चित्रित प्रतियां प्राप्त हुई हैं जो भारत के विभिन्न संग्रहालयों में सुरक्षित है। यह कार्य लगभग 1598-1600 के मध्य हुआ था। इसमें सम्राट के युद्ध, यात्रा, शिकार, विजय, पराजय आदि के सभी दस्तावेज़ प्राप्त होते हैं।

अकबरनामा-अकबरकालीन ग्रंथों में सर्वोत्तम ग्रंथ रहा है। यह 16 वीं शताब्दी के अंतिम दशक का ग्रंथ है इसलिए इसके चित्रों में यर्थाथता अधिक परिलक्षित है । इन चित्रों में दरबारी जीवन,वैभव, अकबर की यात्राओं, सेनाओं, सामान्य लोक जीवन, संगीतज्ञ, सेवक आदि का अंकन किया गया है। अकबरनामा ग्रंथ और उसके चित्र एक दूसरे के पूरक माने जा सकते हैं। इसग्रंथ का सर्वप्रसिद्ध चित्र ‘ राजकुमार सलीम के जन्म पर आनंदोत्सव ‘ था।

अनवार-ए-सुहैली-इस ग्रंथ में भरतीय पंचतंत्र की कहानियां फारसी अनुवाद में लिखित है। अकबर पंचतंत्र की कहानियों को ज्ञानवर्धक और शिक्षाप्रद मानता था इसलिए इनका चित्रण करवाया।
इस ग्रंथ के चित्र लगभग 1598 ई. के आस-पास बनाये गये थे। इस ग्रंथ की चार प्रतियां प्रप्त हुई हैं। इन चित्रों में स्वाभाविकता अधिक हो गई थी।

तारीख-ए-खानदान-ए तैमूरिया-इसमें तैमूर तथा उसके वंशजों के जीवन तथा साहसिक कारनामों का वर्णन है। इसके अंत में बाबर की यादें भी संलग्न हैं। इस ग्रंथ के 132 चित्र बनाये गये हैं। इसके अंतर्गत
तैमूर से लेकर अकबर तक के चित्र निर्मित हैं। एक अन्य विषय जिसमें इतिहास का सरांश है ‘ तारिख-ए-अल्फी ‘ कहलाता है इसमें अकबर के निर्देशन में इस्लाम की सहस्त्राब्दी को लिखित व चित्रित किया गया है

अकबरकालीन चित्रण शैली की विशेषताऐं:
1. अकबरी चित्रों की रेखा में लय व गतिशीलता देखी जा सकती है,जिससे चित्रों में स्वाभाविकता दिखाई देती है। स्त्री-पुरूषों के वस्त्रों की सलवटों व प्राकृतिक दृश्यों में पोत के लिए रेखाओं का ही उपयोग किया है।
2. चमकदार और गहरे रंग प्रयोग में आये हैं परंतु ईरानी चित्रों की तरह बेतहाशा चमक भी नहीं है। बाद के चित्रों में छाया प्रकाश अंकन देखते ही बनते हैं। गेरू, रामरज, सिंदूरी, नीला, हरा आदि रंग काम में लिये गये हैं।
3. चित्रतल पर वृक्षों, मानवाकृतियों, पहाडों और वस्तुओं की अधिकता है। पशु-पक्षियों व पेड़-पौधों का भी अंकन हुआ।

4. एक ही ग्रंथ को अनेक चित्रकारों का कार्य होता था, यहां तक की कई बार एक चित्रको अलग-अलग कलाकारों द्वारा पूर्ण किया जाता था।

5. इस समय के चित्रों में भारतीय, ईरानी तत्वों के साथ ही युरोपियन तत्व भी था जिसके कारण छाया-प्रकाश और क्षय-वृद्धि चित्रों में दिखाई देते हैं।

6. अधिकांश चित्र एक या डेढ़ चश्म बने हैं।

7. चित्रों में हाशिये बनाने की प्रथा थी, उनमें चित्रण और सजावट की जाती थी।

8. चित्र में प्रमुख आकृति को केंद्र में बना कर गोण आकृति को आस-पास बनाया है।

9. संबंधित गद्य व कविता की सुलिपि की पट्टियों को चित्र के ही एक भाग में अंकन किया। भारतीय इतिहास के संदर्भ में यह देखा गया है की मुगल काल की स्मृतियां तथा वृतांत विरले नहीं है। मात्र अकबर के पचास साल के समयकाल में मुगल ग्रंथ सूची के अस्सी अनुवर्ग 1940 में संकलित किये गये। अकबरकालीन चित्रों के संदर्भ में यह कह सकते हैं की उसका ग्रंथालय लगभग तीस हजार पुस्तकों और हजारों सचित्र पोथियों से भरा पड़ा है। प्रारंभ में फारसी प्रभाव के चलते चमकदार वर्ण व प्रबल रेखाएं देखने को मिलती थी, जबकी बाद के काल में संतुलित रेखा व उचित अनुपात दिखाई दिया। अकबर ने भारतीय शैली में
फारसी शैली के तत्वों को स्वयं में मिला कर नवीन शैली को जन्म दिया। सभी प्रकार सेअकबर का शासनकाल मुगल संस्कृति के विकास हेतु सर्वाधिक उपयुक्त रहा।

मारवाड़ चित्र शैली(marwar style of painting)

अकबर

Leave a Reply

%d bloggers like this: